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श्री संवेगरंगशाला
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सुर सुन्दरी भी उस दिन से लेकर दीक्षा का पालन करके पूर्व के स्नेह के कारण वहाँ तेरी देवी रूप में उत्पन्न हुई। और वहाँ देवलोक में मेरे साथ तेरा कोई अपूर्व राग हुआ, इससे एक क्षण भी वियोग के दुःख को सहन नहीं करते अपना बहुत काल पूर्ण हुआ, फिर च्यवनकाल में तू मुझे केवल ज्ञानी के पास ले गया
और वहाँ केवी भगवंत को अपना पूर्वभव तथा भावी जन्म के विषय में पूछा। तब उन्होंने भी अति तीव्र असंख्य दुःखों से भरा हुआ हाथी आदि के पूर्व जन्मों का वर्णन किया और भावी राजा का वर्तमान जन्म भी कहा । उस समय दोनों हाथ जोड़कर तूने स्नेहपूर्वक कहा "हे सूभग ! यह मेरी अन्तिम प्रार्थना है इसे तुम निष्फल नहीं करना" ऐसा कहकर मुझसे कहा कि-जब मैं महा विषय के राग से विमूढ़ राजा बनूं, तब तू इस हाथी आदि भवों का वर्णन सुनाकर मुझे प्रतिबोध करना कि जिससे मैं पुनः पाप स्थान में आसक्त न बन और जैन धर्म का सारभूत चारित्र से रहित होकर दुःखों का कारण रूप दुर्गतियों में न गिर जाऊँ। तेरी प्रार्थना मैंने स्वीकार की तू च्यवन कर यहाँ राजा हआ, और वह देवी कनकवती नामक तेरी रानी हुई। प्रायःकर सुखी जीव धर्म की बात सुनते हैं फिर भी धर्म की इच्छा नहीं करते हैं। इस कारण से प्रथम तुझे अति दुःख से पीड़ित बनाकर मैंने यह वृतान्त कहा है। इससे मैं तेरा वह मित्र हूँ, तु वह देव है, और जो कहा है वह तेरे भव हैं, अतः महाभाग ! अब जो अति हितकर हो उसे स्वीकार करो।
देव ने जब ऐसा कहा तब महसेन राजा अपने सारे पूर्व जन्मों का स्मरण करके मूर्छा से आँखें बंद कर और क्षणवार सोने के समान चेष्टा रहित हो गया। उसके बाद शीत न पवन से चेतना आने से राजा महासेन ने दोनों हाथ जोड़कर, आदरपूर्वक नमस्कार करके कहा-आप वचन के पालन हेतु यहाँ पधारे हो, वह तूने केवल स्वर्ग को ही नहीं परन्तु पृथ्वी को भी शोभित किया है। यद्यपि तेरी प्रेम भरी वात्सल्यता के बदले में तीन जगत की संपत्तियां दान में दे दं तो भी कम है, इसलिए आप कहो कि मैं किस तरह तुम्हारा प्रत्युपकार हो सके ? देव ने 'हा कि जब तू श्री जिनेश्वर भगवान के चरण कमल में दीक्षा स्वीकार करेगा तब हे गजन् ! निःसंशय तुम ऋण मुक्त होंगे। राजा ने 'उसे स्वीकार किया' फिर शुद्ध सम्यक्त्व को प्राप्त करने वाले राजा को उसके स्थान पर पहुँचाकर देव जैसे आया था वैसे वापिस स्वर्ग में चला गया। राजा भी अपने-अपने स्थान पर सुभट हाथी, घोड़े, महन और रानी को देखकर मन में आश्चर्यपूर्वक विचार करने लगा कि-अहो ! देव की शक्ति ! उन्होंने उपद्रव दिखाकर पुनः उसी तरह उपशम कर दिया कि उसे दृष्टि से देखने