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श्री संवेगरंगशाला
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अर्थात् :-'यदि किसी भी निमत्त को प्राप्त कर एक क्षण भी वैराग्य बुद्धि प्रकट हो वह स्थिर रहे तो क्या प्राप्त नहीं होता ? अर्थात् एकक्षण वैराग्य की प्राप्ति से बहुत लाभदायक है।' यह गाथा सुनकर सविशेष उछलते शुभ वाले तूने प्रभात का समय होते ही घर में प्रेम नहीं होने से कुछ मनुष्यों के साथ वन उद्यान की शोभा देखने के लिए निकला । वहाँ उद्यान में एक स्थान पर चारण श्रमण मुनि को देखा।
उस मुनि के प्रशस्त गुण रत्नों रूप शणगार था, उन्होंने मोहमल्ल के दृढ़ दर्प को नष्ट कर दिया था, देह की कान्ति से सब दिशाओं को विभूषित की थी, पापी लोगों की संगति से वे पराङ मुख थे, योग मार्ग में उन्होंने मन स्थिर किया था। वे कर्म शत्र को जीतने में उत्कृष्ट साहसिक थे । पृथ्वी पर उतरे हुए पुनम के चन्द्र के समान सौम्यता से वे मनुष्य के चित्त को रंजन करते हैं, अति विशिष्ट शुभलेश्या वाले, भव्य लोक को मोक्षमार्ग प्रकाश करने वाले. क्रोध, मान, भय, लोभ से रहित वादियों के समूह से विजयी होने वाले, एक पैर के ऊपर शरीर का भार स्थापन कर, एक पैर से खड़े होकर सूर्य सन्मुख दृष्टि करने वाले, मेरूपर्वत के शिखर समान निश्चल, और प्राणियों के प्रति वात्सल्य वाले वे काउस्सग्ग ध्यान में स्थिर रहते हैं। इस प्रकार के गुण वाले उस मुनि को देखकर हर्षित नेत्र वाला तू उनके चरणों में गिरा और कहने लगा कि-हे भगवंत ! अब आप मोक्षमार्ग के उपदेश द्वारा मुझ पर कृपा करो, आपके दो चरणरूप चिंतामणी का दर्शन सफल हो। ऐसा कहने से उनकी महाकरूणा से काउस्सा ध्यान पूर्ण कर योग्य जानकर उससे कहा-हे भव्य ! तुम सुनो :
यह लाखों दुःखों से भरा हुआ अनादि अनन्त संसार में जीव महा मुसीबत से भाग्य योग द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है। उसमें भी आर्य देश, आर्य देश में भी उत्तम कुल आदि श्रेष्ठ सामग्री मिलना कठिन है, और उसमें भी सौभाग्य ऊपर मंजरी समान जैन धर्म की प्राप्ति उत्तरोत्तर महा मुश्किल से होती है। क्योंकि मनुष्य अथवा देव की लक्ष्मी मिल जाए, भाग्ययोग से मनुष्य जन्म मिल जाये परन्तु अचिन्त्य चिन्तामणी के समान अति दुर्लभ जिन धर्म नहीं मिलता है। इस तरह रत्त निधान की प्राप्ति समान धर्म को अतीव कठिनता से प्राप्त करके भी अति तुच्छ विषयों की आसक्ति से महामूढ़ बन उसे निष्फल बना देता है। इसके कारण वह बिचारा हमेशा जन्म-जरा-मरण रूपी पानी से परिपूर्ण और बहुत रोगरूपी मगरमच्छों से भयंकर संसार समुद्र का अनंतबार सेवन करता है। अतः ऐसा कौन बुद्धिमान होगा कि जो बहुत