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महोपाध्याय समयसुन्दर
स्वर्गवास
____कवि वृद्धावस्था में शारीरिक क्षीणता के कारण संवत् १६६६ से ही अहमदाबाद में स्थायी निवास कर लेते हैं। वहीं रहते हुए मात्म-साधना और साहित्य-साधना करते हुए संवत् १७०३ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को इस नश्वर देह को त्याग कर समाधि पूर्वक स्वर्ग की ओर प्रवास कर जाते हैं। इसी का उल्लेख कवि राजसोम अपने "समयसुन्दर” गीत म करता है :
"अणसण करि अणगार, संवत् सतरहो सय बीड़ोत्तरे । अहमदाबाद मझार, परलोक पहुंता हो चैव सुदि तेरसै ।"
किन्तु यह ज्ञात नहीं होता कि सर्वगच्छ-मान्य कवि के स्वर्गारोहण स्थान पर अहमदाबाद के उपासकों ने स्मारक बनवाया था या नहीं ? सम्भव ही नहीं निश्चित है कि कवि का स्मारक अवश्य बना होगा, किन्तु अब प्राप्त नहीं है। सम्भव है उपेक्षा एवं सारसंभाल के अभाव में नष्ट हो गया हो! यदि कहीं हो भी तो शोध होनी चाहिये। अस्तु,
वादी हर्षानन्दन उत्तराध्ययन टीका में उल्लेख करता है कि गडालय (नाल, बीकानेर ) में कवि की पादुका स्थापित है:"श्रीसमयसुन्दराणां गडालये पादुके वन्दे ।"
शिष्य परिवार एक प्राचीन पत्र के अनुसार ज्ञात होता है कि कवि के ४२ बयालीस शिष्य थे । कवि के ग्रन्थों की प्रशस्तियों को देखने से कुछ ही शिष्यों और प्रशिष्यों के नामोल्लेख प्राप्त होते हैं । अतः अनुमानतः आपके शिष्य-प्रशिष्यादिकों की संख्या विपुल ही थी। कौन-कौन और किस किस नाम के शिष्य थे? उल्लेख नहीं मिलता । कतिपय ग्रन्थों के आधार पर कवि की परम्परा का कुछ आभास हमें होता है :
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