________________
उसके बारे में पूर्वविचार करना अत्यन्त कठिन है ।
संकल्प की स्वतन्त्रता - संकल्प की स्वतन्त्रता नीतिशास्त्र की एक नावश्यक मान्यता है । यह इस सत्य पर आधारित है कि मनुष्य का आचरण — उसके द्वारा किसी कर्म का होना, न होना— उसकी स्वतन्त्र प्रेरणाशक्ति पर निर्भर है । मनोविज्ञान सिद्ध कर चुका है कि मनुष्य का स्वभाव चंचल और दोलायमन है । प्रबल से प्रबल व्यक्तित्व के आचरण के बारे में भी मिश्रित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है । यथार्थ विज्ञान मनुष्य को प्रकृति का अंग मानता है, जिनका सम्बन्ध प्रांगिक है । नीतिशास्त्र के अनुसार मनुष्य आत्म चेतन प्राणी है । वह इस सम्बन्ध में विशेषरूप से सचेत है क्योंकि मनुष्य की अनेक सम्भावित शक्तियाँ हैं । प्राकृतिक नियमों का यन्त्रवत् पालन करना तो दूर रहा, वह अपनी इन विशेष शक्तियों के बल पर प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है । अतः एक ओर तो प्राकृतिक घटनाएँ अनिवार्य प्राकृतिक नियमों द्वारा संचालित होती हैं और दूसरी ओर मनुष्य के प्रात्म-प्रबुद्ध प्राणी होने के कारण वे उससे नियन्त्रित भी होती हैं । मनुष्य का आचरण उसकी आदर्श मनःस्थिति एवं सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर निर्भर है । वह अपने कर्मों के लिए स्वयं उत्तरदायी है । उसके प्रचार के औचित्य अनौचित्य पर विचार किया जा सकता है ।
यथार्थ विज्ञान का सम्बन्ध देशकाल में घटित होनेवाली घटनाओं से है फलतः उसकी प्रस्तावनाएँ व्याख्यात्मक होती हैं । पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, यह स्थापना एक विशिष्ट घटना के बारे में बताती है । नीतिशास्त्र इससे एक पग आगे बढ़ता है । उसकी स्थापनाएँ न्यायसम्मत होती हैं । उसका सम्बन्ध उन घटनाओं से नहीं है जो देश-काल या भूत वर्तमान में घटित होती हैं अथवा जिनका सम्बन्ध पूर्वापर कार्य-कारण भाव से है । दूसरे शब्दों में नीतिशास्त्र का सम्बन्ध चरित्र के उस पक्ष से नहीं है जो कि कालक्रम में होनेवाला एक व्यापार है । वह चेतन व्यापारों के औचित्य - प्रनौचित्य का अध्ययन करता है । यथार्थ विज्ञान का सम्बन्ध केवल वस्तुनों के अस्तित्व और उनके बोध से है । यथार्थ में 'क्या है', वह इनका निर्णय करता है । नीतिशास्त्र का सम्बन्ध आदर्श से है, 'क्या होना चाहिए' से है । उसके निर्णय नियामक एवं मान्यतामूलक हैं । वे वर्णनात्मक नहीं, आलोचनात्मक हैं । इसको यह कहकर और भी स्पष्ट कर सकते हैं कि नीतिशास्त्र बुद्धि की सहायता से उस सार्वभौम मापदण्ड की खोज करता है जिसके आधार पर तथ्यों का मूल्यांकन किया जाता है। और इसके विपरीत बौद्धिक रूप से उस सार्वभौम नियम या विश्व व्यवस्था का
1
३६ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org