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भविष्य के अधिक सुख के बदले नहीं चुनना चाहिए और न निश्चित वर्तमान सुख को अनिश्चित भविष्य के सुख के लिए ही छोड़ना चाहिए । सुख को चुनते समय भली-भाँति हित-अहित को समझ लेना चाहिए। अपने जीवन के कार्य-कलापों को निष्पक्ष रूप से समझना, अपना सुख चुनते समय वर्तमान और भविष्य के सुखों को बराबर मूल्यवान् मानना यह बौद्धिक आत्म-प्रेम का सन्देश है। यदि सिरेनैक्स के सिद्धान्त को स्वीकार करें तो भावना वर्तमान जीवन को ही सबकुछ मानती है, किन्तु सिजविक के अनुसार जीवन में बुद्धि के स्थान को नहीं भूलना चाहिए । बुद्धि ही जीवन में सुख का उचित वितरण करती है। व्यक्ति को समस्त जीवन के सुख अथवा पूर्ण शुभ की खोज करनी चाहिए । जब हम व्यक्ति के पूर्ण शुभ के बारे में सोचते हैं तो हमें तीसरा नीतिवाक्य मिलता है । यह बौद्धिक परोपकारिता का स्वतःसिद्ध कथन (The axiom of Rational Benevolence) है । व्यक्तियों के शुभ की तुलना और उनका जोड़ 'सार्वभौम शभ' की धारणा को लाता है। समग्रता और उसके अंशों का सम्बन्ध यह बतलाता है कि विश्व के दृष्टिकोण से किसी एक व्यक्ति का सख वैसा ही है जैसा कि किसी अन्य व्यक्ति का । अन्य व्यक्तियों की तुलना में किसी व्यक्ति के सुख को तभी महत्त्व दे सकते हैं जबकि उससे अधिक सुख प्राप्त होने के असाधारण कारण हो । बुद्धि बतलाती है कि व्यक्ति के जीवन का ध्येय उसका अपना ही सुख नहीं है वरन् सामान्य सुख है। बुद्धि स्वार्थ और परमार्थ को यक्त करती है। मिल की भांति सिजविक उपयोगितावाद का मनोवैज्ञानिक प्रमाण नहीं देते, ताकिक प्रमाण देते हैं । बुद्धि के लिए प्रत्येक व्यक्ति भावजीवी है। प्रत्येक को सुख भोगने का अधिकार है। बुद्धि के सम्मुख 'मेरा-तेरा' का भद नहीं है। प्रत्येक सार्वभौम शुभ का अंग है। उसके सुख का उतना ही महत्त्व है जितना कि किसी दूसरे अंग का। वैयक्तिक और सामाजिक सुख दोनों की समान रूप से वृद्धि की आवश्यकता है। बुद्धि बतलाती है कि व्यक्ति का सुख उसके लिए प्रमुख रूप से शुभ है। इससे यह उपलक्षित होता है कि दूसरों का शुभ भी समान महत्त्व का है।
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सहजज्ञानवादी उपयोगिता के साथ
सुखवाद की आलोचना सिजविक के सिद्धान्त का मूल्य-सिजविक के सिद्धान्त में नैतिक निष्ठा मिलती है । वे मुक्त हृदय से सच्चे नैतिक नियमों को समझाने के लिए उद्यत
सुखवाद (परिशेष) | १७३
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