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की व्युत्पत्ति व्यक्ति के संकल्प से बाहर अन्य किसी ध्येय के विचार से सम्भव नहीं है । बाह्य ध्येय अनुभव पर निर्भर है। अतः वह केवल सांकेतिक आदेश • (hypothetical imperative) दे सकता है। वह स्थिति-विशेष के अधीन है। उस आदेश के अनुसार यदि कर्ता किसी विशिष्ट ध्येय की प्राप्ति करना चाहता है तो उसे एक विशिष्ट प्रकार से कर्म करना होगा। कर्तव्य का आदेश निरपेक्ष है। उसका किसी ऐसे बाह्य ध्येय से सम्बन्ध नहीं है जिसकी ओर संकल्प प्रेरित हो बल्कि वह स्वतः संकल्प के उचित प्रयोग से ही सम्बद्ध है। नैतिक आदेश परिस्थिति-विशेष की चिन्ता नहीं करता। उसके अनुसार चाहे कुछ भी हो जाये, व्यक्ति को उसके अनुरूप आचरण करना चाहिए। यह कारण-सापेक्ष आदेश नहीं है, निरपेक्ष-आदेश है । कारण-सापेक्ष आदेश प्रतिदिन के क्रियाकलाप, इच्छा, भावना, परिवेश, जगत् की प्रकृति आदि पर निर्भर है। वह सार्वभौम
और अनिवार्य नहीं है। किन्तु कर्तव्य की बाध्यता अनिवार्य है। कर्तव्य की चेतना अथवा 'करना चाहिए' की चेतना अनिवार्यता की सूचक है । कर्तव्य, कर्तव्य के लिए करना ही धर्म है। कर्तव्य का आदेश नैतिक बुद्धि या शुभ संकल्प का आदेश है । बुद्धि का आत्मारोपित नियम अपने परम और निश्चल आदेश द्वारा एकान्तिक निष्ठा की अपेक्षा रखता है । वह मनुष्य के अन्दर परम और पूर्ण आदेश के रूप में व्यक्त होता है। ... - शुभ संकल्प-परम आदेश का उदगम क्या है ? वह कहाँ से आता है ? काण्ट का कहना है कि वह परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है । परिस्थितिजन्य आदेश कारण-सापेक्ष आदेश हैं। परम आदेश का उत्पत्ति-स्थल कर्ता का सत्य स्वरूप है। उसका स्रोत नैतिक मनुष्य का स्वभाव है। कर्ता कर्म करते समय. संकल्प के रूप में उसे व्यक्त करता है और संकल्प का स्वरूप ही कर्म के नैतिक मूल्य को निर्धारित करता है। शुभ संकल्प ही तत्त्वतः शुभ है। वही नैतिक . एवं शुभ कर्म के मूल में है। शुभ संकल्प की क्या पहचान है ? वही संकल्प शुभ है जो बौद्धिक है। बौद्धिक संकल्प को कैसे समझ सकते हैं ? संकल्प के चयन का विश्लेषण बतलाता है कि उसके दो अंग हैं-बौद्धिक और अबौद्धिक । वह भावनात्रों, आवेगों आदि पर बौद्धिक नियन्त्रण रखता है। बौद्धिक योजना के अनुरूप उन्हें निर्देशित करता है । यह बतलाता है कि संकल्प का सत्य रूप बौद्धिक है । इसके बौद्धिक रूप को यह कहकर समझाया जा सकता है कि प्रत्येक अंगी स्वाभाविक प्रकृतिबश अपने संरक्षण और सुख के लिए प्रयास करता है। अंगी के संरक्षण एवं शारीरिक संरक्षण के दृष्टिकोण से बुद्धि व्यर्थ है। अतः
२२० / नीतिशास्त्र
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