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दोनों ने ही बुद्धि को मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ विशिष्टता के रूप में स्वीकार किया है । बुद्धि वह क्षमता है जो सत्य का ज्ञान देती है । बुद्धि को सर्वोच्च मानने पर भी उन्होंने शुष्क ज्ञानवाद का प्रतिपादन नहीं किया है । विशुद्ध सुखवाद की आलोचना करते हुए उन्होंने समझाया कि सुख की प्राप्ति उन इच्छात्रों पर निर्भर है जो सुख के अतिरिक्त अन्य वस्तुनों की इच्छा करती हैं । सुख और सौन्दर्यबोध कल्याण के अनिवार्य अंग हैं ।
प्लेटो और अरस्तू की प्रणाली- दोनों के नैतिक आदर्श की धारणा समान है, पर प्रणाली भिन्न है । प्लेटो सर्वत्र संगति और एकता को देखते हुए सामान्यीकरण करता है । ग्ररस्तु विश्लेषण श्रौर विभाजन को अपनाता है । अरस्तु नैतिक सद्गुणों के व्यावहारिक अर्थ खोजता है तथा प्लेटो उनकी मूलगत एकता को ढूंढ़ता है । अरस्तू की भिन्नतामूलक बुद्धि नीतिशास्त्र को अन्य विज्ञानों से भिन्न कर देती है । प्लेटो के लिए नैतिक आदर्श और तात्विक अस्तित्व एक ही हैं । किन्तु अरस्तू याथार्थवाद के आधार पर इसे महत्त्व नहीं देता कि सर्वश्रेष्ठ विचारगम्य शुभ को मनुष्य प्राप्त कर सकता है ।
अर्वाचीन पूर्णतावाद
प्रवेश - काण्ट बुद्धि और संकल्प के ऐक्य को समझाने में असमर्थ रहा और उसकी इस दुर्बलता ने एक ओर तो जर्मनी के बौद्धिक प्रदर्शवादियों (फिस्टे, शेलिङ्ग और हीगल) को प्रभावित किया और दूसरी श्रोर शॉपेनहावर' के स्वेच्छावादी निराशावाद ( Voluntaristic pessimism ) को । बौद्धिक आदर्शवादियों ने समझाया कि आत्म-प्रबुद्ध बुद्धि या मानस (self-conscious reason or mind) परम सत्य है और उन्होंने संकल्प को इसी सत्य के आधार पर समझाने का प्रयास किया । अपने ऐसे सिद्धान्त का प्रतिपादन करने में वे इस प्राशावादी निष्कर्ष पर पहुँचे कि वास्तविक सत्ता अनिवार्यतः शुभ है। नैतिक दर्शन के क्षेत्र में हीगल को आधुनिक पूर्णतावादियों का प्रवर्तक होने का श्रेय प्राप्त है । हीगल से ही अनुप्राणित होकर ग्रीन, ब्रेडले, बौसेन्के, मेकेञ्जी, म्योरहेड, जेम्स सेथ आदि ने इस पुरातन - नूतन विचारधारा को अग्रसर किया ।
नैतिक विकास का अर्थ - पूर्णतावाद ने समझाया कि जैव विकास की
1. Schopenhauer.
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पूर्णतावाद / २७३
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