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उचित है। बुद्धि ही मनुष्य का विशेष गुण है। इसी के कारण मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी है। परम शुभ को प्राप्त करनेवाला विवेकी व्यक्ति वह है जो अपने सम्पूर्ण जीवन में बुद्धि के आदेश का पालन करता है । इस आधार पर सुकरात ने सद्गुण और ज्ञान को एक माना । प्लेटो और अरस्तू ने बुद्धि की निर्देशनशक्ति को समझा और सुकरात से भी अधिक स्पष्ट रूप से कहा कि शुभ जीवन का रहस्य बुद्धि है । उन्होंने बौद्धिक प्राणी के लिए एकमात्र शुभ जीवन बौद्धिक जीवन बतलाया है। चिन्तनयुक्त या दार्शनिक जीवन ही नैतिक आदर्श है। अर्वाचीन बुद्धिवाद और वैराग्यवाद सुकरात के शिष्यों के सिद्धान्त की ही प्रतिध्वनि है। प्लेटो से भावना के स्थान को अप्रमुख माना। वह भावना को वृद्धि के पूरक के रूप में नहीं समझ पाया। अरस्तू दो प्रकार के सद्गुणयुक्त जीवन को स्वीकार करके कहता है कि उच्च सदगुणपूर्ण जीवन या थेगोरिया का जीवन शुद्ध बौद्धिक जीवन है और निम्न या सामान्य सद्गुणयुक्त जीवन वाला व्यक्ति बौद्धिक और अबौद्धिक स्वभाव की मिश्रित श्रेष्ठता का जीवन व्यतीत करता है। इस भाँति जिस सुखवादी तत्त्व की प्लेटो ने मुख्य रूप से उपेक्षा की उसे ही अरस्तु ने नवीन रूप से प्रधानता दी। अरस्तू ने सदगुणयुक्त जीवन को केवल अनिवार्य रूप से सुखद ही नहीं माना बल्कि सुख में कल्याण या शुभत्व की परिपूर्णता और विकास को देखा। वैसे, दोनों ने ही शुद्ध बुद्धिमय जीवन को नैतिक आदर्श माना ।
वस्तुगत शुभ की धारणा–सुकरात ने आचरण द्वारा सामाजिक शुभ का सन्देश दिया, किन्तु सिनिक्स ने आत्म-निर्मर व्यक्तित्व को प्रधानता देकर तथा सिरेनैक्स ने वैयक्तिक सुख को प्रधानता देकर परम व्यक्तिवाद को अपना लिया। प्लेटो और अरस्तू ने सुकरात से प्रभावित होकर वैयक्तिक और सामाजिक शुभ के सम्बन्ध को उठाया। आचरण की ऐसी समस्या जटिल और कठिन है क्योंकि मनुष्य-स्वभाव में स्वार्थ और परमार्थ के बीच प्रकट विरोध दीखता है तथा यह प्रतीत होता है कि वैयक्तिक कल्याण और सामाजिक कल्याण की दो भिन्न प्रेरणाएं हैं । वस्तुगत शभ की धारणा ही ऐसे विरोध को मिटा सकती है। ___ मानवतावाद-सुकरात ने उस मनुष्य के आचरण के प्रश्न को उठाया जो कि समाज का सामान्य सदस्य है। उसके व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन की समस्याओं को अपने साधनापूर्ण जीवन के सामाजिक पक्ष द्वारा समझाया। प्लेटो ने इन्द्रिय और अतीन्द्रिय जगत् के द्वैत को अपनाकर इस समस्या को
पूर्णतावाद | २७१
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