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द्वारा आत्मोन्नति और पूर्णता को प्राप्त करता है । गीता ने व्यक्ति को महत्त्व दिया है। व्यक्ति को नगण्य न मानने के कारण ही उसकी पूर्णता के लिए प्रयास किया और कहा है कि स्थायी आत्मानन्द के लिए संकीर्ण प्रवृत्तियों का त्याग अनिवार्य है।
गीता का सन्देश विश्वव्यापी और शाश्वत है, वह सामयिक और संकीर्ण नहीं है । गीता ने उच्च और निम्न प्रात्मा के संघर्ष के प्रश्न को उठाकर यह समझाया है कि जीवात्मा अपने बन्धनों से मुक्त होकर परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। परमात्मा का सान्निध्य एवं उसकी प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य है क्योंकि जीवात्मा का अन्तरतम सत्य परमात्मा है । परमात्मा को प्राप्त करने के लिए अथवा भगवत् साक्षात्कार के लिए भेदभाव को भूलना होगा । समानता का भाव उस बुद्धि को देता है जो जनमंगल और भूमंगल का प्रतीक है । निःसन्देह जब तक मनुष्य समाज में रहेगा वह गीता के लोक-कल्याणकारी ज्ञान का आश्रय लेता रहेगा।
गीता | ३४५
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