Book Title: Nitishastra
Author(s): Shanti Joshi
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 368
________________ कारण विद्या है। अविद्या को समझना द्वादश निदान, भव-चक्र को समझना है । जरामरण के दुःख से कैसे छुटकारा पा सकते हैं एवं ( १ ) जरामरण का क्या कारण है ? जरामरण बिना ( २ ) जाति ( जन्म ग्रहण) के सम्भव नहीं है और जाति का कारण ( ३ ) भव ( जन्म की इच्छा ) है । भव (४) उपादान ( सांसारिक विषयों के प्रति प्रासक्ति) पर निर्भर है और उपादान ( ५ ) तृष्णा परनिर्भर है । तृष्णा का कारण ( ६ ) वेदना है । वेदना या इन्द्रियानुभूति बिना ( ७ ) स्पर्श के सम्भव नहीं है । स्पर्श के लिए ( ८ ) षडायतन ( पाँच इन्द्रियाँ तथा मन का समूह ) आवश्यक है । षडायतन इसलिए है कि (2) नामरूप ( मन और देह ) है और नामरूप बिना (१०) विज्ञान (चेतना) के कोई अर्थ नहीं रखता है । विज्ञान अपने अस्तित्व के लिए ( ११ ) संस्कार ( प्रवृत्ति) पर निर्भर है और संस्कार का कारण ( १२ ) अविद्या है | अतः दुःख का मूल कारण विद्या है। बिना विद्या के दुःख-निरोध सम्भव नहीं है । अविद्या के कारण ही जीव जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति नहीं पाता है । तृतीय श्रार्य सत्य - दुःख के कारण को जान लेने पर दुःख निरोध सम्भव हो जाता है । दुःख निरोध की अवस्था निर्वाण की अवस्था है क्योंकि निर्वाण दुःख-शून्यता है, दुःख का अन्त है | अतः निर्वाण दुःख की समाप्ति और पुनजन्म के कारण से मुक्ति का सूचक है । शब्द विज्ञान के अनुसार निर्वाण का अर्थ है–'बुझ जाना', 'ठंडा हो जाना,' 'शांन्त हो जाना' । इससे अर्थ लगा लिया जाता है कि निर्वाण जीवन के अन्त का सूचक है। निर्वाण जीवन का अन्त एवं अस्तित्व का निराकरण नहीं है । यह इसी जीवन में प्राप्त हो सकता है। निर्वाण वस्तुतः तीव्र वासनाओं का अन्त है, वासना की अग्नि का बुझ जाना है, यह व्यक्तित्व में जो भ्रम है उसका विनाश है, श्रविद्या हन्ता का नाश है, समस्त दुःखों की परिसमाप्ति है। निर्वाण इस सत्य के बोध का सूचक है कि विश्व परिवर्तनशील है, सब कुछ अनन्त है, यह नैरात्म्यवाद का बोध है | नैरात्म्यवाद हमारी स्वार्थी इच्छाओं - राग, द्वेष, मोह, वासना, काम, घृणा आदि -- की शुद्धि कर देता है। निर्वाण अकर्मण्यता - कर्म संन्यास - का भी सूचक नहीं है । स्वयं बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात् पैंतालीस वर्षों तक जन-कल्याणार्थं कर्म किया । निर्वाण निष्काम कर्म - महत् करुणा – के आदर्श को हमारे सम्मुख रखता है । यह समस्त मानवता के दु:ख निरोध के आदर्श को हमारे सम्मुख रखता है । यह हमारे भीतर एकता की भावना को उत्पन्न करता है— सब प्राणियों के प्रति दया और प्रेम के भाव को जन्म देता बौद्ध नीतिशास्त्र / ३६७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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