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बौद्ध नीतिशास्त्र
जीवन-सिद्धार्थ अथवा गौतम बुद्ध का जन्म राजसी कुल में ५६३ ई० पू० में हया । उनका लालन-पालन वैभव और ऐश्वर्य में हा। किन्तु जब उन्होंने दुर्बल वद्ध व्यक्ति, रोगी व्यक्ति, मत व्यक्ति और संन्यासी को देखा तो उनका मन सांसारिकता से विमुख हो गया। उन्होंने विश्व की क्षणभंगुरता एवं विश्वव्यापी दुःख से आक्रान्त होकर उन्तीस वर्ष की आयु में वैराग्य ले लिया । दुःख के कारण को जानने के लिए वे संकल्परत हो गये । उन्होंने अपने समय की चेतना के अनुसार कठोर तपस्या की । छः वर्ष तक कठोर वैराग्य एवं योगसाधना में तथा निरन्न रहने पर भी जब उन्हें ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ तो उन्होंने यह सब छोड़ दिया। अन्त में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें ५२८ ई० पू० में परम प्रकाश, ज्ञान एवं बोध की प्राप्ति हो गयी और वे सिद्धार्थ से 'बुद्ध' हो गये। उन्होंने दुःख के स्वरूप और उसको दूर करने के उपाय को जान लिया ।
आर्य सत्य-बुद्धत्व को प्राप्त कर उन्होंने चार आर्य सत्यों को समझा(१) दुःख, (२) दुःख समुदाय अथवा दुःख का कारण, (३) दुःख निरोध तथा (४) दु:ख-निरोध का मार्ग । तत्पश्चात् उन्होंने अपना जीवन (पंतालीस वर्ष) अपना धर्म और दर्शन का प्रचार करने में व्यतीत किया। ___बुद्ध के मौखिक आख्यानों-वचनों और उपदेशों को उनके शिष्यों ने त्रिपिटक-सुत्तपिटक, विनयपिटक तथा अभिधम्मपिटक–में सुरक्षित किया है। सुत्तपिटक में बुद्ध की वाणी एवं उपदेश, विनयपिटक में सदाचार सम्बन्धी नियम (नैतिक समस्या) तथा अभिधम्मपिटक में दार्शनिक विवेचन मिलता
बौद्ध नीतिशास्त्र | ३६५
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