Book Title: Nitishastra
Author(s): Shanti Joshi
Publisher: Rajkamal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 349
________________ रहा है । उनकी दृष्टि में सत्य ही ईश्वर है । 'सत्य के बिना ईश्वर कहीं नहीं है।' सत्य का ज्ञान भगवद्ज्ञान है । भगवद्ज्ञान के अनुसार भगवान की अनुभूति अथवा उनकी सेवा उनके व्यापक सगुण तथा व्यक्त स्वरूप की सेवा द्वारा ही सम्भव है। सम्पूर्ण सृष्टि एवं समस्त जीव भगवान् के ही अंश हैं। इसीलिए विश्व-बन्धूत्व तथा जीव प्रेम की भावना सत्य के ज्ञान की द्योतक हैं। सत्य का नैतिक स्वरूप-सदाचार ही सत्य का नैतिक तथा व्यावहारिक पक्ष है। इसके लिए तप और त्याग आवश्यक हैं। तप की आवश्यकता प्रात्मशुद्धि के लिए और त्याग की आवश्यकता मोह तथा स्वार्थ की भावना से मुक्त होने के लिए है। स्वार्थ और मोह दृष्टि में प्रावरण की तरह पड़े रहते हैं और सत्य के दर्शन में बाधक होते हैं। स्वार्थ त्याग तथा जीवों की सेवा द्वारा मनुष्य सत्य के निकट पहँचता है। सत्य को समझने के लिए हठधर्मी एवं कट्टरता से ऊपर उठना आवश्यक है । उसके लिए भ्रमात्मक तथा एकांगी सिद्धान्तों से दूर रहकर पूर्वग्रहों और दोषों से अपने को मुक्त करना चाहिए। यदि सदाचरण ही जीवन में महत्त्वपूर्ण है और वही जीवन का ध्येय है तो सदाचरण का क्या रूप हो ? गांधीजी का नीतिशास्त्र श्रद्धा तथा विश्वासमूलक है । वह सैद्धान्तिक नहीं है, किन्तु जीवन-सत्य पर आधारित है । गांधीजी ने अपने सहज विश्वास के कारण, अनेक धर्मों, दर्शन-ग्रन्थों के अध्ययन, मनन, चिन्तन तथा निरन्तर आत्म-साधना के कारण सदाचरण के सम्बन्ध में आन्तरिक अनुभूति प्राप्त कर ली थी। उनका नैतिक आदर्श काल्पनिक नहीं है, वह जनजीवन के वास्तविक ज्ञान पर आधारित है। उन्होंने सत्य के शाश्वत तत्त्वों पर व्यावहारिक तथा नैतिक प्रकाश डाला। उनके अनुसार ज्ञान सद्गुण है । सत्य का ज्ञानी सत्य के अनुसार ही कर्म करेगा। उसके विपरीत कर्म करना असह्य है; वह जीवित मृत्यु है। जनता के सम्मुख उन्होंने, अपने जीवन के रूप में, सत्य के क्रियात्मक आदर्श को सम्मुख रखा। अपने चारों ओर व्याप्त युगजीवन के घनिष्ठ सम्पर्क में आने के कारण उन्होंने साम्प्रदायिक वाद-विवादों के ऊपर एक मानवीय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। अत: उनके नैतिक नियम किसी विशिष्ट वाद के अन्तर्गत नहीं पाते हैं। जैसा कि गांधीजी स्वयं कहते हैं, "मैं तो किसी का बाजा बजाता नहीं या फिर सारे जगत् का बजाता हूँ।" गांधीजी की नैतिकता मानव-जीवन के कल्याण की नैतिकता है। गांधीवादयदि उसे वाद कहना आवश्यक ही है--किसी प्रकार के कोरे संकीर्ण सिद्धान्तों का संग्रह नहीं है । वह जीवन-सत्य के व्यापक क्रियात्मक स्वरूप का प्रतिपादन ३४८ । नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372