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सौम्य, शिष्ट, प्रेम का ही एक रूप है | सत्याग्रह के लिए भी उनका कहना है कि यह उनका मौलिक सिद्धान्त नहीं है । यह सनातन धर्म अथवा शाश्वत सत्य का यथार्थ तथा व्यावहारिक रूप है । 'सत्याग्रह श्रात्मशुद्धि की लड़ाई है; वह धार्मिक लड़ाई है ।" सत्याग्रह के लिए सम्यक् बोध तथा व्यापक प्रेम की आवश्यकता है । दूसरे के मन में सत्य का बोध जाग्रत कर प्रेम से उसे आकर्षित करना ही सत्याग्रह है । सत्य की ओर अभिमुख होकर दूसरों के मन में उच्च भावनाओं को जाग्रत करना, उनका ग्रात्मोन्नयन करना ही सत्याग्रह का ध्येय है । गांधीजी के सत्याग्रह का मुलरूप आत्मत्याग तथा आत्म- बलिदान है । यही नहीं, उन्होंने सत्याग्रही के कर्तव्यों की रूपरेखा भी बनायी । सत्याग्रही को आत्मसंयमी, आत्मप्रबुद्ध तथा निर्भीक होना चाहिए । उसका बलमात्र आत्मबल है । उसे लगन, आत्मविश्वास, अहिंसा तथा श्रद्धा के साथ, अडिग होकर, सत्य के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए । इसी में उसे श्रात्मानन्द मिलता है और यही लोककल्याण का मार्ग है ।
हिन्दू धर्म और अछूतोद्धार - गांधीजी का धर्म से अभिप्राय किसी विशिष्ट सम्प्रदाय या मत से नहीं, किन्तु शाश्वत सत्य से था । उन्होंने हिन्दू धर्म के मौलिक दार्शनिक सत्यों को अपने विवेक के प्रकाश में समझकर उन्हें आत्मसात् किया और कहा कि प्राणी- प्राणी में मूलतः कोई भेद नहीं है । दूसरे का
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हित करना अथवा बुरा सोचना या देखना प्रथर्म है । मानवता के प्रति ममत्व की भावना तथा विश्वप्रेम ही धर्म है । अथवा सर्वकल्याण का नाम ही धर्म है । वे अपने प्रवचनों में बार-बार दुहराते थे कि मैं सनातन ( शाश्वत ) सत्य का पूजक हूँ । उनका सनातन धर्म अत्यन्त सहिष्णु है । उसके चार मुख्य स्तम्भ हैं : सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । उसका क्षेत्र व्यापक है । वह 'सर्वधर्म समन्वय' में विश्वास करता है । वेद, कुरान, बाइबिल, गीता, आवेस्ता आदि सब महान् धर्मग्रन्थों के मौलिक सिद्धान्तों को स्वीकार कर उनके प्रति श्रद्धा रखता है । मानव एकता को भूलकर बाह्य जातिगत तथा सम्प्रदायगत विभेदों को देखना, अपने धर्म को अच्छा कहकर दूसरे धर्मों का अनादर करना
१. गांधी- सत्याग्रह के मुख्य अंग स्नेह, प्रेस, एकता, सहृदयता और सहयोग हैं। भारतीय दर्शन और संस्कृति ने भी सदैव इन्हें ही प्रधानता दी।
२. देखिए - पट्टाभि भा० १, पृ० ३८, ४५-४७, १७८-१८४ ।
३५२ / नीतिशास्त्र
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