Book Title: Nitishastra
Author(s): Shanti Joshi
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 348
________________ रहे थे तो गोडसे नामक एक व्यक्ति ने गोली चलाकर इस अमर प्रकाश को सदा के लिए भौतिक शरीर से छुटकारा दिला दिया । महत्त्वाकांक्षा : पृथ्वी पर राम-राज्य की स्थापना - जीवमात्र के सुख तथा कल्याण की भावना ही गांधीजी की अन्तरात्मा की पुकार थी । उनके मनोजगत् पर दार्शनिक सिद्धान्तों से अधिक धार्मिक विश्वासों का प्रभाव था । वे विश्वास वैज्ञानिक अथवा तार्किक नहीं कहे जा सकते किन्तु वे महत् धारणाओं और उच्च भावनाओं से अनुप्राणित थे। गांधीजी का मंगलमय भगवान् के प्रति अखण्ड विश्वास था । उनका कहना था कि मंगलमय तथा लोक-कल्याणमय जगत् की स्थापना सात्विक तथा नैतिक गुणों के अर्जन से ही सम्भव है । व्यक्ति को अपनी मुक्ति के लिए सात्विक नियमों का पालन करने का प्रयास करना चाहिए । उनका यह भी कहना था कि वैयक्तिक साधना सामूहिक निर्माण अथवा विकास का एक आवश्यक अंग है । समस्त संसार को 'सियाराममय' मानने के कारण ही उन्होंने यह कहा और इसीलिए जीवनभर लोक-सेवा और लोक-कल्याण में निरत रहे । उन्होंने आत्मोत्थान को लोक-कल्याण का एक सफल साधन माना । पृथ्वी पर आदर्श जीवन अथवा रामराज्य की स्थापना के लिए उन्होंने साध्य और साधन को समान महत्त्व दिया । भौतिक सुखसम्पन्न सामाजिक जीवन से अधिक प्रधानता एक पवित्र, सरल, सदाचारपूर्ण कर्तव्यनिष्ठ जीवन को दी। उनके रामराज्य का ध्येय एक उन्नत प्रदर्शमय मनोजीवन का ध्येय है । गांधी - दर्शन : सत्य की परिभाषा - गांधीजी का दर्शन गीता तथा उपनिषद् के दर्शन से भिन्न नहीं है । भारतीय दर्शन ने सत्य के जिस चिरन्तन तथा शाश्वत स्वरूप की चर्चा की है, गांधीजी ने उसी को अपने जीवन में अनुभव करने का प्रयत्न किया है । उसी की प्राप्ति के लिए सदाचरण श्रौर साधना को महत्ता दी । उनके जीवन में भक्ति तथा कर्मयोग का अद्वितीय समन्वय मिलता है । यह गीता के निष्काम तथा अनासक्त कर्म की व्याख्या पर आधारित है । उनकी भक्ति का केन्द्र बिन्दु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का सात्विक चरित्र रहा है और उनका राम गीता तथा उपनिषद् का शाश्वत तथा सनातन पुरुष १. 'मैं यह दावा नहीं करता कि मैंने कुछ नये सिद्धान्तों और तत्वों का भाविष्कार किया है। मैंने अपने ढंग से शाश्वत सत्यों को प्रतिदिन के जीवन की समस्याओं में अनूदित करने का प्रयत्न किया है ।' Jain Education International For Personal & Private Use Only गांधीजी / ३४७. www.jainelibrary.org

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