Book Title: Nitishastra
Author(s): Shanti Joshi
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 287
________________ असमर्थ हों तो हमें चाहिए कि उन्हें एक-दूसरे से पृथक् करके समझने का प्रयास करें और मूल्यों की तुला में उनके स्थान को निर्धारित करें। ___ आभ्यन्तरिक मूल्य-मूल्यवादी आत्मा के ज्ञानात्मक, क्रियात्मक और रागात्मक स्वरूपों के आधार पर सत्य, सौन्दर्य और शुभ या सद्गुण को आभ्यन्तरिक मूल्य प्रदान करते हैं। ये अपने-आपमें शुभ हैं। इनकी खोज व्यक्ति इन्हीं के लिए करता है और इसलिए ये साध्य हैं, न कि साधन । सत्य आत्मा के ज्ञानात्मक पक्ष, सौन्दर्य रागात्मक पक्ष और शुभ एवं नैतिक पूर्णता क्रियात्मक पक्ष को तुष्टि प्रदान करता है। ये मल्य अति वैयक्तिक (overindividual) हैं अतएव सार्वभौम हैं । ये व्यक्तियों से स्वतन्त्र हैं यद्यपि व्यक्ति इनका अनुभव करते हैं । ये तीनों उसी भाँति अपृथक् हैं जिस भाँति कि ज्ञान, कर्म और भावना। किन्तु फिर भी यह सत्य है कि बौद्धिक रूप से इनकी अभिन्नता को समझने में असमर्थ हैं। शुभ नैतिक कर्तव्य या बाध्यता की भावना देता है। नैतिक शुभ की चेतना नैतिक स्थायी भावना से युक्त है। यह सदाचार के मार्ग की ओर ले जाती है। अतः शुभ सत्य तथा सौन्दर्य की भाँति नहीं है । सुन्दर चित्र की प्रशंसा करते समय हम चित्रकार की प्रेरणा, चरित्र एवं व्यक्तित्व पर निर्णय नहीं देते, किन्तु नैतिक शुभ चरित्र पर निर्णय देता है । यह अद्वितीय और अनुपम है । भगवान् को परम मूल्य माननेवाले मूल्यवादी भगवत् प्रेम को पाभ्यन्तरिक मूल्य के रूप में स्वीकार करते हैं। भगवान् ही सत्य, सौन्दर्य और शिव की परिपूर्णता है। प्रार्थना और दिव्य मिलन अद्वितीय आनन्द हैं। वे अपने-आप में शुभ हैं। नैतिक मल्य भगवत् प्रेम की ओर ले जाता है। नैतिकता मानवता के प्रति सेवा और प्रेम को महत्त्व देती है और धर्म भगवत प्रेम को। नैतिक मूल्य और धार्मिक मूल्य दोनों ही प्रेम को महत्त्व देते हैं और प्रेम ही परोपकारी कर्म का प्रमुख स्रोत है । प्रेम के द्वारा ही हम दूसरे के चरित्र को प्रभावित कर सकते हैं। भगवत प्रेम का अर्थ सर्वशुभ से है। भगवत् प्रेम और पड़ोसी का प्रेम ही नैतिक शुभ का सार है । वैयक्तिक और सामूहिक जीवन की पूर्णता उस १ तुलना कीजिए न धनं न जनं न च कामिनी कवितां वा जगदीश कामये मम जन्मनि जन्मनि ईश्वर भगवताद्भक्तिरहैतुको त्वयि । २८६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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