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करने के लिये कहती है। प्रभुत्रों की श्रेणी के मनुष्यों के लिए नीत्से उन प्रवृत्तियों को सद्गुण कहता है जो मनुष्य के कठोर और पाशविक स्वभाव के लक्षण हैं। अहंमन्यता, निदे यता, धृष्टता, प्रतिशोध, स्वायत्तीकरण अादि उसके अनुसार कोमल प्रवृत्तियों से श्रेष्ठ हैं। इन्हें प्रभुत्रों की नैतिकता वांछनीय सद्गुण मानती है । किन्तु जब वह दासों की नैतिकता का वर्णन करता है तब सहानुभूति, दया, क्षमा, विनम्रता तथा प्रभु भक्ति को दासों के लिए आवश्यक गुण बतलाता है। शक्तिशाली व्यक्तियों को वह उपयोगितावादी नैतिकता और धर्म के बन्धन से अपने को मुक्त रखने को कहता है; क्योंकि ये उनकी प्रगति में बाधक हैं। पर दुर्बलों के लिए वे अावश्यक हैं। जनसाधारण को उनके धार्मिक विश्वास के द्वारा ही अतिमानव उन्हें अपने राज्य के लिए साधन बना सकता है। अतः उनके धार्मिक विश्वास की रक्षा करना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इसके द्वारा ही उन्हें शिक्षित और अनुशासित किया जा सकता है । इस भाँति एक ओर तो नीत्से 'शुभ और अशुभ से परे' के सिद्धान्त का पोषक है और दूसरी ओर उपयोगितावादी नैतिकता तथा धार्मिक विश्वास को स्वीकार करता है। उसके • 'शुभ और अशुभ से परे' का सिद्धान्त केवल शक्तिशालियों के लिए है; शक्तिशाली जो कुछ भी करता है वह उचित है। प्रचलित मान्यताएँ और धार्मिक विश्वास, जो प्रभुत्रों की नैतिकता की दृष्टि से तुच्छ, हेय और त्याज्य है, अशक्त के लिए अनिवार्य है। इनके द्वारा अतिमानव अशक्तों को अपने हाथ का खिलौना बना सकता है। नैतिकता को इस भाँति दो वर्गों में विभाजित करके नीत्से शासक वर्ग और शासित वर्ग अथवा प्रभुत्रों और दासों को पूर्ण रूप से विभक्त कर देता है। मानव मानव का विरोधी है। किन्तु नैतिकता मानवमानव में कोई भेद नहीं देखती है । नैतिकता के क्षेत्र में ऐसी असमानता के लिए कोई स्थान नहीं है । वह वस्तुगत, सार्वभौम और सार्वजनीन है । नीत्से की नवीन मान्यताओं की सूची नैतिकता के नाम में भयानकता, अमानुषीयता और कुरूपता की सूची है। तत्त्वज्ञान की दृष्टि से नीत्से सत्तात्मक एकता में विश्वास नहीं करता। नैतिकता की दृष्टि से वह 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का विरोधी है । धर्मों की मूल, आधारभूत समानता की भावना को वह भ्रमात्मक कहता है । संस्कृति के आदर्शस्तम्भ, करुणा और प्रेम को वह हेय समझता है। नैतिकता को दो विरोधी वर्गों में बाँटकर वह मनुष्यता का गला घोंटता है। द्वन्द्वात्मक नैतिक नियम को मानवीय विकास और गुणों का मुख्य आधारस्तम्भ मानना बर्बर सभ्यता का वीभत्स और नग्न प्रदर्शन करना है। नीत्से का सिद्धान्त असम्भव,
३२० / नीतिशास्त्र
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