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२३ चार्वाक-दर्शन
चार्वाक-दर्शन एवं जड़वाद-भारतीय दर्शन की जड़वादी विचारधारा चार्वाकदर्शन के नाम से ज्ञात है। दर्शन के जन्म-काल से ही जड़वाद किसी-न-किसी रूप में रहा है, इसमें सन्देह नहीं है। जड़वादियों के अनुसार जड़ का ही एकमात्र अस्तित्व है। विश्व की विभिन्न वस्तुओं को, यहाँ तक कि मन, आत्मा, चैतन्य आदि को जड़ के ही आधार पर समझा सकते हैं। सृष्टिकर्ता, स्वर्ग, नरक, धर्म, आत्मा की अमरता आदि की कल्पना मिथ्या है । जड़ एवं प्रकृति ही सृष्टि के मूल में है।
उत्पत्ति काल तथा ग्रन्थ-चार्वाक-दर्शन अपनी अप्रस्फुटित तथा अविकसित अवस्था में ऋग्वेद में तथा पूर्व-बौद्ध-युग में वर्तमान रहा है। वैसे विद्रोही सिद्धान्त के रूप में इसका उत्पत्ति-काल ६०० ई० पू० माना गया है । यह वह युग है जिसमें कि बौद्ध और जैन दर्शन का प्रतिपादन हुआ था। चार्वाक-दर्शन पर कोई भी स्वतन्त्र पुस्तक प्राप्त नहीं है। यह कहा जाता है कि वृहस्पति के सूत्र जड़वाद पर शास्त्रीय प्रमाण हैं जो कि नष्ट हो गये हैं। चार्वाक-दर्शन पर एक भी स्वतन्त्र पुस्तक न होने पर भी हम यह नहीं मान सकते कि इस विचारधारा या सिद्धान्त का अस्तित्व नहीं था। इसके अस्तित्व का सबसे प्रबल प्रमाण यह है कि इसका उल्लेख वेदों, पुराणों, बौद्धग्रन्थों तथा दार्शनिक ग्रन्थों में मिलता है। ___ दो वर्ग-चार्वाकों को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं : धूर्त तथा सुसंस्कृत । धूर्त चार्वाक वे चार्वाक हैं जिन्होंने कि निकृष्ट इन्द्रिय सुख को वांछनीय बतलाया है। वास्तव में, आलोचकों ने इन अश्लील और पशु-प्रवृत्तिवाले
चार्वाक-दर्शन / ३२७
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