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चार पुरुषार्थ पुराणों एवं हिन्दू धर्म के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ हैं । पुरुषार्थ का अर्थ है पुरुष का लक्ष्य एवं पुरुष के उद्योग का विषय, यह उस प्रयोजन को इंगित करता है जिसकी प्राप्ति के लिए पुरुष को प्रयत्न करना चाहिए । पुरुषार्थ को प्राप्त करके मनुष्य अपने दुःख का निवारण करता है। ____काम-काम को प्रथम पुरुषार्थ माना गया है। काम इन्द्रियसूख तथा रतिसुख का सूचक है। हिन्दु धर्म ने काम को स्वीकार किया है, उसे अनैतिक नहीं माना है। इसीलिए देवी-देवताओं की कल्पना उनके यूगल रूप----शिव-पार्वती, हर-गौरी—में की है। किन्तु जड़वादियों की भाँति इसे जीवन का परम लक्ष्य नहीं माना है। चार्वाक दर्शन जो यह मानता है कि कामिनी सुख ही परम पुरुषार्थ है हिन्दू धर्म को मान्य नहीं है और न यह पाश्चात्य भोगवादी दृष्टिकोण -स्थूल सुखवाद-को ही स्वीकार करता है। काम का जीवन में एक सीमित स्थान है; उच्च ध्येय, महत् पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए यह प्रारम्भिक सोपान मात्र है क्योंकि इसकी सन्तुष्टि अपने-आपमें पूर्ण नहीं है। यह तभी वांछनीय है जब यह श्रेष्ठतम जीवन की अोर मनुष्य को प्रेरित करता है।
अर्थ-मानव-जीवन काम के साथ ही अर्थ की अपेक्षा रखता है । जीवन में अर्थ अार्थिक मूल्यों का एक विशिष्ट स्थान है । काम और अर्थ मनुष्य की दैहिक
आवश्यकताओं--भौतिक कल्याण-की बैसाखियाँ हैं। अर्थ के लिए कह सकते हैं कि कामतृप्ति धन एवं अर्थ की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। किन्तु अन्ततः काम और अर्थ अपने-आपमें साध्य नहीं हैं। मनुष्य दैहिक-बौद्धिक आध्यात्मिक प्राणी है । उसे काम और अर्थ के धरातल से ऊपर उठना है।
चार पुरुषार्थ | ३२५
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