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प्रजातन्त्रवाद भी व्यर्थ है क्योंकि सम्पत्तिहीन के लिए वैयक्तिक स्वतन्त्रता अर्थशून्य है। साम्यवाद ही एकमात्र शुभ है क्योंकि यह आर्थिक समानता का पोषक है । ऐसे समाज की स्थापना के लिए विश्वव्यापी क्रान्ति अनिवार्य है। हमें चाहिए कि हम श्रमिकों में विद्रोह और विप्लव की प्राग सुलगा दें। जब श्रमिक अपने ऊपर किये हुए अत्याचारों के प्रति सचेत हो जायेंगे तो वर्गयुद्ध जन्म लेगा। रक्त-क्रान्ति के पश्चात् सर्वहारा का अनन्य शासन अनिवार्य है । धनिकों एवं बुर्जुगों' का राज्यसत्ता में कोई अधिकार नहीं रहेगा। पूंजीवाद ने सर्वहारावर्ग को उत्पन्न किया है और सर्वहारावर्ग उसका विनाश अवश्य करेगा। श्रमिकों का एकच्छत्र राज्य साम्यवाद की स्थापना करेगा और साम्यवाद की अन्तिम स्थिति में राज्यशासन की कोई आवश्यकता नहीं रह जायेगी।
आलोचना आर्थिक मूल्यांकन---उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में प्रौद्योगिक क्रान्ति से आक्रान्त हुए कुछ प्रतिभाशाली विचारक हीगल की द्वन्द्वात्मक पद्धति से प्रभावित हुए। इन विचारकों ने, विशेषकर, मार्क्स और एंजिल्स ने मानव-विचारों, मान्यताओं और नियमों के मूल में भौतिक घटनाओं एवं समाज की आर्थिक स्थिति को देखा और इस निष्कर्ष पर पहँचे कि धर्म, दर्शन, कला, सामाजिक संस्थाएँ, नैतिक मान्यताएँ आदि आर्थिक व्यवस्था को प्रतिबिम्बित करती हैं। अधिक संख्यक की दुर्बल आर्थिक स्थिति को देखकर मार्क्स अत्यन्त दुखी हुए और उनकी गहन समवेदना उग्र प्रतिशोध के रूप में प्रकट हुई। उन्होंने अपने द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद द्वारा समझाया कि विश्वव्यापी रक्तक्रान्ति ही आर्थिक समानता, सुख और शान्ति की स्थापना कर सकती है। इसमें सन्देह नहीं कि मार्क्स ने अपने युग की समस्याओं तथा मशीन के सम्पर्क में आयी हुई जनता को भलीभाँति समझा। मनुष्यों की क्षुधा-काम की प्रवृत्तियों का अध्ययन करके एक नवीन सामाजिक संघटन की ओर विश्व का ध्यान आकृष्ट किया। सभी विचारक अब इस सत्य को किसी-न-किसी रूप में मानने लगे हैं कि जीवन के
१. Bourgeois == बुर्जुश्रा शब्द मध्यवर्ग का पर्यायवाची है। मध्यवर्ग निर्दयता,
दुष्टता एवं नृशंसता का प्रतीक बन गया है । २. Proletariat=प्रोलिटेरिएंट, श्रमिक अथवा सर्वहारा ।
कार्ल मार्क्स /३०१
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