________________
रूप देते हैं। मानस आर्थिक शक्तियों का कुछ सीमा तक रूपान्तर कर बुद्धि तथा विचार द्वारा परिस्थिति को एक विशिष्ट रूप देता है। किन्तु साथ ही यह भी सत्य है कि मनुष्य के सृजनशील विचार सहज तथा स्वतन्त्र चिन्तन के परिणाम नहीं हैं। वे उस शिक्षा, संस्था और प्रचलित मान्यताओं की उपज हैं जिनमें कि व्यक्ति पलता है और इन सबके मल में आर्थिक स्थिति है।
साम्यवाद तथा साध्य और साधन की समस्या-मार्क्स के अनुसार साम्यवादी जनतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भौतिक आवश्यकताओं को प्राप्त करने का अधिकार रहेगा। अपनी योग्यता तथा आवश्यकता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से अवसर मिल सकेगा। वैयक्तिक सम्पत्ति के लिए साम्यवाद में कोई स्थान नहीं है। समानता को स्वीकार करनेवाला साम्यवाद सम्पत्ति पर एकमात्र राष्ट्र का आधिपत्य मानता है यद्यपि सब व्यक्ति योग्यता एवं अावश्यकतानुसार समान रूप से सम्पत्ति का उपयोग कर सकते हैं । सम्पत्ति का ऐसा सिद्धान्त वर्गहीन समाज की स्थापना करेगा। और वर्गहीन समाज आर्थिक स्वार्थों, लोभों तथा ईर्ष्याओं से मुक्त होकर जनमानवता की भावना की पुष्टि करेगा। ऐसे तन्त्र में रहनेवाला व्यक्ति आर्थिक चिन्ताओं से मुक्त होकर अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है । आर्थिक स्वतन्त्रता ही स्वतन्त्रता को जन्म देती है और आर्थिक स्वतन्त्रता के लिए निरन्तर कर्म (शारीरिक श्रम) करना अनिवार्य है। समता और स्वतन्त्रता की भावनाएँ व्यक्तित्व के विकास में सहायक हैं किन्तु इनके मूल में वर्गहीन समाज है। व्यक्ति समाज का अंग है। उसे समाज के लिए कर्म करने पड़ेंगे। सामाजिक गुण ही अन्य गुणों को उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न यह है कि ऐसे वर्गहीन समाज की स्थापना कैसे सम्भव है ? मार्क्स का कहना है कि ऐसे समाज के लिए वर्गसंघर्ष एवं रक्तक्रान्ति का होना अनिवार्य है। प्रारम्भ में ऐसे समाज के संचालन के लिए तानाशाही का होना "भी आवश्यक है। अपनी अन्तिम स्थिति में ऐसे समाज में शासन-सत्ता अपने
आप ही लुप्त हो जायेगी। वर्गहीन समाज कल्याणप्रद है किन्तु उसकी प्राप्ति के लिए हिंसात्मक साधन को स्वीकार करना पड़ेगा। पूँजीवादी समाज में अधिकांश व्यक्ति भूखे मर रहे हैं। रेडियो, चलचित्र, प्रेस सभी पर धनिकों का अधिकार है। वे धन के बल पर वोट तक खरीद लेते हैं। उनका धन और शक्तिलोभ नृशंस शासक की भाँति सर्वहारावर्ग का रक्त चूस रहा है । असहाय सर्वहारा अपने अधिकारों की मांग तक नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में
३०० / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org