________________
तथा मूर्खतापूर्ण हैं। भगवान् के नाम पर सबको समानता की श्रेणी में रखना अतिमानव का तिरस्कार करना है। समानता का विचार काल्पनिक है। अतिमानव में जो शक्ति की महदाकांक्षा है, वह. असमानता का लक्षण है। ईसाई धर्म समानता के साथ प्रत्येक व्यक्ति को अपने-आपमें परिपूर्ण मानता है। नीत्से उसके विपरीत कहता है कि अतिमानव अपने ध्येय की पूर्ति के लिए मानव को साधन बना सकता है। ईसाई धर्म निष्क्रिय, अयोग्य तथा असमर्थ व्यक्ति का धर्म है। वह असफल जीवनवालों को यह कहकर सान्त्वना देता है कि दूसरे जीवन में उन्हें सफलता मिलेगी। दुर्बलों को यह कहकर धीरज बँधाता है कि पौरुषीय गुणों से सम्पन्न, आत्माभिमानी, दढ़ तथा आत्मनिर्भर व्यक्तित्व से भगवान् घृणा करते हैं। नीत्से का कहना है कि भगवान अथवा ईसूमसीह पर आस्था नहीं रखनी चाहिए। क्योंकि इससे हम अतिमानव को भूल जाते हैं । अथवा 'सब देवता मर गये हैं : अब हम चाहते हैं कि अतिमानव जीवित रहे ।' अतिमानव को विकास का ध्येय मानने के लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि 'पुराना ईश्वर मर गया है । यह मानते ही मन में आकांक्षा, आश्चर्य तथा स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत हो जायेगी और तब सब लोग जीवन की प्रगति की ओर सन्तद्ध हो जायेंगे। उस समय पौरुषीय, मानवीय, नैतिक गुणों का विकास ही जीवन का लक्ष्य हो जायेगा।
उपयोगितावादी नैतिकता-नीत्से ने उपयोगितावादी नैतिकता को अनैतिक कहा है; क्योंकि वह समानता में विश्वास करती है और जनसाधारणअविवेकी, शक्तिहीन, अनैतिक, ह्रासोन्मुख व्यक्तित्व-को जीवित रहने का अधिकार देती है। नीत्से के दर्शन का ध्येय अतिमानवों को प्रतिष्ठित करना था । वह उन सभी विचारों के विरुद्ध है जो समानता का सर्वकल्याणकारी मार्ग अपनाते हैं। उसका कहना था कि उपयोगितावादी नैतिकता की नींव झूठी
और थोथी है । यह समता की धारणा पर आधारित है। वास्तविकता यह है कि मनुष्य समान नहीं है। मानव और अतिमानव की असमानता प्रत्यक्ष है। उपयोगितावादी नैतिकता को वह दल की नैतिकता अथवा संघनैतिकता कहता है जो भय से उत्पन्न होती है। उसे माननेवाला व्यक्ति कायर है। वह वही कार्य करता है जो कि संघ द्वारा समर्थित है । संघसदाचार के अनुसार व्यक्ति को जो कुछ भी समूह से ऊपर उठाकर, उसे शक्तिशाली तथा पड़ोसियों के भय का कारण बनाता है वह पाप है। संघनैतिकता में सहनशीलता, विनय, यथानुकूलता और समानता की प्रवृत्ति का आदर किया जाता है। नीत्से का
३१२ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org