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स्वीकार नहीं करता। वह नैतिकता के नाम पर समाज की अर्थशास्त्रीय व्याख्या करता है।
विरोधाभास-मार्क्स का कहना है कि आर्थिक समानता वर्गहीन समाज एवं साम्यवाद की स्थापना करेगी जो कि मानव-विकास की अन्तिम परिणति है । इस समाज में शान्ति चिरस्थायी होकर रहेगी। यह समाज ही विश्वजीवन के विकास ध्येय है। किन्तु मार्क्स की ऐसी उक्ति विरोधाभासपूर्ण है। क्या उसका द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद यह नहीं कहता कि एक ही स्थिति सदैव नहीं रह सकती ? क्या निषेध-विरोध अथवा भाव-प्रभाव का नियम सदैव नवीन शक्तियों को जन्म नहीं देता है ?
कार्ल मार्क्स | ३०५
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