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तक पहुँचते-पहुँचते वह अपनी उत्तरप्रवृत्ति को जन्म दे देती है। यह क्रम चलता रहता है। अथवा तथ्यात्मक घटनाओं के उतार और चढ़ाव का क्रम ही विकास है। मार्क्स कार्य-कारण भाव को भी मानता है। प्रत्येक तथ्यात्मक घटना के घटित होने के पीछे सदैव एक कारण है । वास्तविक घटनाओं को लेते हुए कहता है कि उन्नीसवीं शताब्दी में व्यक्तिवाद अपने चरम विकास में पहुँचा और उसने अपने विकास के क्रम में सामूहिकवाद को जन्म दिया। अतः घटनाओं को समझने के लिए विरोधी प्रवृत्तियों और उनके परिणाम को समझना आवश्यक है।
समाज का विश्लेषण : विरोधी वर्ग-इस दृष्टि से मार्क्स समाज का अध्ययन करता है और इस परिणाम पर पहुँचता है कि समाज की आर्थिक रचना प्रचलित नैतिक, दार्शनिक, धार्मिक और सामाजिक विचारों को समझा सकती है । विभिन्न विचारों को समझने के लिए ही वह अपने अर्थशास्त्रीय सिद्धान्त की ऐतिहासिक दृष्टि से मीमांसा करता है। यदि प्राचीन मानवइतिहास को पढ़ें तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताओं-भोजन, वस्त्र, निवासस्थान-ने उसे कच्चे माल का उपयोग करना सिखलाया। जीवन-यापन के लिए मनुष्य और वस्तु का सम्बन्ध अखण्ड और आवश्यक है । मनुष्य और वस्तुओं के बीच के सम्बन्ध ने ही मनुष्य और मनुष्य के बीच के सम्बन्ध को स्थापित किया है । एक ओर वे लोग हैं जो कच्चा माल, उत्पादन, एवं उत्पन्न वस्तुओं और उत्पादन के यन्त्रों के स्वामी हैं और दूसरी ओर वे जिनके पास केवल श्रम करने की शक्ति है और जिनके जीवन की आवश्यकताएँ उन्हें विवश करती हैं कि वे अपनी श्रम-शक्ति को अधिकारी वर्ग के हाथों में बेच दें। मानव-जीवन का लब्ध इतिहास बतलाता है कि समाज में सदैव दो विरोधी वर्ग रहे हैं। शासक और शासित, पूँजीपति और सर्वहारा, स्वामी और सेवक अथवा वस्तुओं के अधिकारी और अपनी श्रम-शक्ति को बेचनेवाले। यही दो वर्ग सदैव किसी-न-किसी रूप में प्रस्फुटित होते रहे हैं। ऐतिहासिक दृष्टान्त देते हुए मार्क्स ने कहा कि समाज में विरोधी वर्गों के तीन मुख्य रूप मिलते हैं-(१) दासप्रथावाला समाज, (२) सामन्ती समाज और (३) पूँजीवादी समाज ।
सामाजिक नैतिकता वर्ग नैतिकता है-इन तीनों प्रकार के समाजों का
1. Collectivism.
२६ ६ / नीतिशास्त्र
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