Book Title: Nitishastra
Author(s): Shanti Joshi
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 277
________________ उन्होंने सुखवाद और बद्धिवाद की एकांगिता से ऊपर उठने का प्रयास किया और उस सर्वग्राही दृष्टिकोण को अपनाने का प्रयत्न किया जिसके आधार पर सम्यक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जा सकता है। कल्याणकारी मार्ग की पोर-जीवन की विभिन्न समस्याओं को व्यावहारिक रूप देने के लिए आत्मा के स्वरूप को जानने का प्रयास करना चाहिए। सभी पूर्णतावादी बुद्धि और भावना के प्रश्न को उठाते हैं और इनके सम्भावित समन्वय की धारणा को लेकर नैतिक समस्याओं को हल करते हैं । इस समन्वय की धारणा के मूल में परम सत्य, चैतन्य तत्त्व, परम प्रत्यय अथवा भगवान् हैं। ऐसी परम एकता को स्वीकार करने पर भी उन्होंने मनुष्य के स्वतन्त्र अस्तित्व को समझने की चेष्टा की है और उसकी योग्यतानों तथा सीमानों का परीक्षण किया है । अरस्तू का मध्यम मार्ग और ब्रेडले का 'मेरी स्थिति और कर्तव्य' मनुष्य के मूर्त सामाजिक अस्तित्व के सूचक हैं। यद्यपि समाज का मूल्यांकन करते समय हीगल व्यक्तित्व को भूल जाता है फिर भी सामान्य रूप से सभी पूर्णतावादियों ने व्यक्ति और समाज के न्यायोचित अधिकार और स्वतन्त्र किन्तु परस्पर निर्भर मूल्य को समझा है। प्रत्येक व्यक्ति बौद्धिक है। उसका अपना अस्तित्व है। उसके व्यक्तित्व की पूर्णता दूसरों की पूर्णता की अपेक्षा रखती है। जिस स्वार्थ और परमार्थ के प्रश्न को अन्य विचारकों ने शाश्वत समस्या का रूप दे दिया था उसे पूर्णतावादियों ने मानव सत्य के आधार पर समझाया और उसे आकर्षक, सुन्दर, व्यापक, वास्तविक तथा कल्याणकारी रूप दिया। यदि इस सत्य के आधार पर आज के विश्वव्यापी शोषक-शोपित के प्रश्न को सुलझायें तो व्यक्तियों और राष्ट्रों के ध्वंस के बदले एक उन्नत मानव-जाति का निर्माण हो जायेगा जिसे कि पाशविक प्रवृत्तियाँ छिपाये हुए ___व्यक्तित्व को प्राप्त करो'- इस कथन द्वारा पूर्णतावादियों ने समझाया कि संकीर्ण प्रात्मा से ऊपर उठकर बौद्धिक प्रात्मा की परिपूर्णता को प्राप्त करना चाहिए। इसके लिए प्रात्मा के स्वरूप को पहचानना आवश्यक है। प्रात्मा का ज्ञान उन शक्तियों पर नियन्त्रण रखता है जो कि अधोमुखी हैं। वह हमें कर्तव्यबोध देता है। वह हमें यह भी बतलाता है कि प्रत्येक व्यक्ति बौद्धिक है और उसका स्वतन्त्र अस्तित्व है। ऐसा ज्ञान उस आत्मत्याग की ओर प्रेरित करता है जो कि प्रात्म-कल्याण और पूर्णता का सूचक है। संकीर्ण आत्मा की मत्यु ही आध्यात्मिक आत्मा के जीवन का प्रारम्भ है जो आत्मा और २७६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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