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भाँति नैतिक विकास यान्त्रिक नहीं है । मनुष्य को अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए यद्यपि विकास के क्रम में मानस ग्रात्म प्रबुद्धता की ओर बढ़ रहा है । मनुष्य केवल कर्म ही नहीं करता वरन् अपने कर्मों तथा ज्ञान पर चिन्तन भी करता है | समसामयिक पूर्णतावादी एक ओर ग्रीन की विचारधारा से प्रभावित हुए हैं और दूसरी ओर हीगल और काण्ट की । इन पूर्णता - वादियों के अनुसार जिस सत्ता की पूर्णता को चरितार्थ कहना है वह केवल प्रकृति या सार नहीं बल्कि आत्मा और संकल्प है। जो नियम आत्मा की पूर्णता का प्रादेश देता है वह प्रकृति अथवा किसी अन्य शक्ति का नहीं, आत्मा का नियम है । यह ग्रात्मा वास्तविकता के मूल में है । यह वह शाश्वत ज्ञाता है जिसके हम प्रतिरूप हैं । हीगल तथा काण्ट से प्रभावित पूर्णतावादियों ने संकल्प के स्वरूप at नीतिशास्त्र के लिए पर्याप्त प्राधार माना और ग्रीन से प्रभावित पूर्णतावादियों ने आत्मा के स्वरूप को ।
पूर्णतावाद और अन्य सिद्धान्त - प्राचीन और अर्वाचीन, दोनों ही काल के, पूर्णतावादियों ने अपने सिद्धान्त को आदर्शवादी तत्त्वदर्शन पर आधारित कर आत्म-साक्षात्कार एवं आत्म- पूर्णता को जीवन का ध्येय माना । शुभ अस्तित्व की परिपूर्णता की प्राप्ति पर निर्भर है और वह अस्तित्व आत्मा या संकल्प है । वह नियम जो आत्म-साक्षात्कार का आदेश देता है अस्तित्व का वह सामान्य नियम नहीं है जिसके अनुसार प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव की पूर्णता को प्राप्त होती है प्रत्युत आत्मा का वह नियम है जो अन्तिम विश्लेषण में समस्त वास्तविकता का स्रोत है । अपनी आत्मा को विश्वात्मा मानना तथा उसकी प्राप्ति के लिए प्रयास करना ही मनुष्य का ध्येय है । इसी पर आत्मा की परिपूर्णता निर्भर है | अतः जिस आत्मा का साक्षात्कार करना चाहते हैं वह सीमित तथा सामान्य अनुभव द्वारा ज्ञात आत्मा नहीं है बल्कि शाश्वत, प्राध्यात्मिक ज्ञाता आत्मा है जो अपने को सीमित आत्माओं द्वारा पुनरुत्पन्न करता है । ऐसा सिद्धान्त न बुद्धिवाद, न सहजज्ञानवाद और न प्रकृतिवाद के अन्तर्गत प्रा सकता है । बुद्धिवादी मनुष्य के मूर्त व्यक्तित्व को समझने में असमर्थ रहे । पूर्णता - वादियों ने मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाकर बुद्धिवादियों की इस कमी को दूर किया । उन्होंने काण्ट की नियमानुवर्तिता की धारणा के बदले उस नियम at for जिसे ध्येय की धारणा निर्धारित करती है और जो सम्पूर्ण ग्रात्मा को स्थायी आनन्द देता है | अतः नैतिक नियम रूपात्मक एवं अन्तर्तथ्य शून्य नहीं है । प्रकृतिवादियों के विपरीत पूर्णतावादियों ने बाह्य प्रकृति को मानस का ही
२७४ / नीतिशास्त्र
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