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प्रकृतिवाद और सहजज्ञानवाद दोनों का ही भेद, वास्तव में, यथार्थ विज्ञान और प्रादर्श विधायक विज्ञान का भेद है। प्रकृतिवादी की प्रणाली वर्णनात्मक है। वह किसी नैतिक आदर्श को सम्मुख नहीं रखता । वह केवल यह समझाने का प्रयास करता है कि मनुष्य का स्वभाव क्या है ? हमारी शुभ अथवा नैतिकता के बारे में क्या धारणाएँ हैं ? स्वीकृत नैतिक मान्यताओं के उद्गम को हम कैसे समझा सकते हैं ? सहजज्ञानवादी यह समझाने का प्रयास करते हैं कि क्या होना चाहिए, शुभ क्या है ? वे नैतिक प्रश्नों और समस्याओं को उठाते हैं तथा नैतिक आदर्श को समझाने का प्रयास करते हैं।
अन्तर्बोध का व्यापक प्रयोग अन्तर्बोध : उसका अर्थ-सहजज्ञानवादियों ने जिस मानदण्ड से कर्मों को मापा है वह अन्तर्बोध का मानदण्ड है। अन्तर्बोध उस नैतिक शक्ति का नाम है जो तत्काल ही कर्मों के औचित्य-अनौचित्य पर निर्णय दे देती है। अन्तर्बोध का क्या रूप है, उसकी परिभाषा क्या है, यह निश्चित रूप से बताना कठिन है। प्रत्येक सहजज्ञानवादी ने अपने ढंग से उसके रूप को समझाया है । स्थूल रूप से प्रत्येक सहजज्ञानवादी यह मानता है कि कर्म अपने-आपमें शुभ अथवा अशुभ हैं और मनुष्य के पास कर्मों के इस प्राभ्यन्तरिक रूप को समझने के लिए एक विशिष्ट शक्ति है । इस शक्ति को ही नैतिक शक्ति अथवा अन्तर्बोध कहते हैं। शब्द-व्युत्पत्ति के आधार पर कॉन्शेन्स (conscience) लेटिन शब्द कॉन्सायर (conscire) से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है, बोध होना (अनुचित का) अथवा किसी वस्तु को समग्र रूप से जानना या स्थिति का सम्यक् ज्ञान । अन्तर्बोध सत्य का तात्कालिक ज्ञान देता है। ऐसे ज्ञान को कल्पना, चिन्तन अथवा तर्क द्वारा नहीं प्राप्त कर सकते हैं। अन्तर्बोध शब्द का प्रयोग सहजज्ञानवादियों के अतिरिक्त अन्य नीतिज्ञों एवं विचारकों ने भी किया है। अतः इसका सहजज्ञानी अर्थ समझने के लिए हमारे लिए यह आवश्यक हो जाता है कि विभिन्न सन्दर्भो में भी इसका अर्थ समझ लें।
कानन-कानून के अनुसार अन्तर्बोध कोई विशिष्ट शक्ति नहीं है । यदि इसका कोई अर्थ है तो यही कि सामान्य अनुभव तथा बुद्धि की सहायता से उस स्थिति की व्यापक कल्पना कर लेना, जिसे कि कर्ता अपनाना चाहता है ताकि उसे यह पता चल जाये कि कानूनी दण्ड का कोई भय नहीं है। वास्तव में यह वैधिक नियम को जानना तथा उसकी धाराओं और उपधारामों को समझना
सहजज्ञानवाद / २३६
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