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बनाते हैं । ऐसा कथन मुख और अन्तर्बोध के विरोध को रहने देता है। प्रात्मप्रेम और अन्तर्बोध दोनों को ही मानकर बटलर ने नैतिक उत्तरदायित्व और व्यक्तिवाद की महत्त्वपूर्ण समस्या को उठाया । व्यक्ति स्वतन्त्रतापूर्वक अपने कर्मों को निर्धारित कर सकता है और उन पर निर्णय दे सकता है । वह अपने परम कल्याण की प्राप्ति कर सकता है। ऐसा वैयक्तिक अधिकार उसे कर्तव्य की ओर ले जाता है क्योंकि व्यक्ति समाज का अनन्य अंग है । कर्तव्य और अधिकार के सापेक्ष सम्बन्ध को समझाने में वह असमर्थ रहा । व्यक्तिवाद और नैतिक उत्तरदायित्व के समानाधिकार के संरक्षक सिद्धान्त के रूप में वह अपने सिद्धान्त की स्पष्ट और व्यवस्थित व्याख्या नहीं कर पाया। इसका अव्यक्त कारण यह है कि व्यक्तिवाद और नैतिक उत्तरदायित्व के नाम पर वह सुखवाद और नैतिक विशद्धतावाद के चक्कर में फंस जाता है । बटलर आत्मकल्याण का नैतिक अर्थ समझने में असमर्थ है और सुख को स्वीकार कर वह उस असंगति को अपने सिद्धान्त में स्थान देता है जो क्षम्य नहीं है । सुख को मान्यता देकर उसने भूल की । सुख नैतिकता के किसी भी व्यवस्थित, प्रामाणिक और ग्रहणीय सिद्धान्त का आधार नहीं हो सकता।
अाधुनिक विचारधारा पर प्रभाव-प्रात्मप्रेम और अन्तर्बोध के सम्बन्ध को समझाने के लिए बटलर अनेक तर्क-वितर्कों से काम लेता है पर प्रयास करने पर भी वह मानव-स्वभाव के नियामक सिद्धान्त की द्वैतवादी व्याख्या पर पहुँचता है। उसकी इस दुर्बलता ने नैतिक चिन्तन को एक नयी दिशा दखलायी । मानव-स्वभाव को आवेगों का व्यवस्थित राज्य मानकर वह प्लेटोवाद का अभिनन्दन करता है और स्वभाव एवं प्रकृति के अनुरूप रहना चाहिए कहकर वह स्टोइकवाद का समर्थन करता है। किन्तु प्लेटोवाद और स्टोइकवाद दोनों ही बुद्धि को एकमात्र नियामक शक्ति या शासक मानते हैं । उनके सिद्धान्तों में नियामक शक्ति के द्वैत के लिए स्थान नहीं है । बटलर के नियामक सिद्धान्त के द्वैत ने आधुनिक विचारधारा को दो तत्त्व दिये : सार्वभौम बुद्धि और स्वार्थमूलक बुद्धि या अन्तर्बोध और आत्मप्रेम । ये द्वैत क्लार्क और शैपट्सबरी के सिद्धान्त में अस्पष्ट रूप से वर्तमान अवश्य हैं किन्तु बटलर के कारण ही उन्हें स्पष्ट रूप से आधुनिक विचारधारा ने अपनाया है। सिजविक ने इस समस्या को अपने दर्शन में उठाया है । ___उपयोगितावाद—अन्य सहजज्ञानवादियों के साथ बटलर भी मानता है कि कर्म अपने-आप में शुभ और अशुभ हैं। उनका नैतिक मूल्यांकन उनके
२६४ / नीतिशास्त्र
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