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बुद्धिवादी सहजज्ञानवाद : कडवर्थ
नैतिक विभक्तियाँ शाश्वत हैं — कडवर्थ,' जो कि केम्ब्रिज प्लेटोनिस्ट्स का नेता था, इस वर्ग का सबसे प्रसिद्ध विचारक हुआ । उसने हॉब्स के परम स्वार्थवाद और प्रकृतिवाद के विपरीत यह बतलाने का प्रयत्न किया कि नैतिक मान्यताओं एवं नैतिक विभक्तियों का, वैयक्तिक एवं सामाजिक विचार, लोकमत, सिद्धान्त अथवा सामाजिक समझौते से स्वतन्त्र, अपना निश्चित और निरपेक्ष अस्तित्व है । ईश्वरविद्या को माननेवाले धर्मनिष्ठों के विरुद्ध वह कहता है कि भगवान् अपने कर्म नैतिकता के शाश्वत और अनिवार्य प्रत्ययों के अनुरूप निर्धारित करते हैं । अत: मात्र संकल्प शुभ को अशुभ या अशुभ को शुभ नहीं बना सकता है । शुभ और अशुभ की धारणाएँ शाश्वत हैं, वे संकल्प की उपज नहीं हैं । नैतिक विभक्तियाँ वस्तुओं के प्राभ्यन्तरिक गुणों की सूचक हैं, उनका वस्तुगत अस्तित्व है ।
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प्लेटो का प्रभाव - प्लेटो से प्रभावित होकर कडवर्थ हॉब्स के संवेदनवादी अनुभववाद की आलोचना करते हुए कहता है कि संवेदनाएं स्थायी सत्ता का ज्ञान नहीं दे सकती हैं । ज्ञान के वास्तविक विषय सार्वभौम प्रत्यय हैं और वे बोधगम्य हैं । उनका ज्ञान अनुभव-निरपेक्ष है, संवेदनजन्य नहीं । नैतिक प्रत्ययों, उदाहरणार्थ, कर्तव्य, न्याय आदि का हम अनुभव नहीं कर सकते । स्पर्शेन्द्रिय, नेत्रेन्द्रिय, रसेन्द्रिय द्वारा हम उनका स्पर्श, दर्शन और आस्वादन नहीं कर सकते हैं । वे प्रत्यय सार्वभौम, नित्य और शाश्वत हैं, प्रत्युत्पन्न, प्रकृत्रिम और स्वार्थजन्य नहीं । नैतिक नियम वस्तुओं के सार में निहित हैं, अथवा शुभ वस्तुगत और स्वाभाविक है । नैतिक प्रत्यय वे प्रत्यय हैं जो कि बुद्धिसम्मत हैं । अतः गणित के सत्यों की भाँति नैतिकता के सत्यों का सम्बन्ध विशिष्ट संवेदनों से नहीं किन्तु वस्तुनों के बोधगम्य और सार्वभौम तत्त्व से है । वे उतने ही चिरन्तन हैं जितना कि वह शाश्वत मानस जिसकी सत्ता इनसे अभिन्न है ।
वैज्ञानिक और नैतिक सत्यों का सादृश्य — कडवर्थ यह मानता है कि भगवान् मूल मानस हैं । उनके मानस में विज्ञान और नैतिकता के शाश्वत विचारों का मूल प्रतिरूप है । विज्ञान और नैतिकता के सत्यों के ज्ञान का मूल स्रोत एक ही है । कृतिबुद्धि और विचारबुद्धि एक ही हैं। नैतिकता के विचार
1. Ralph Cudworth 1617-1688.
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सहजज्ञानवाद ( परिशेष) / २४७
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