________________
करे या न करे । निरीक्षण तथा अन्तर्निरीक्षण द्वारा बटलर इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि नैतिक बाध्यता की चेतना मानव स्वभाव का एक सत्य है और यह चेतना इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि नैतिक बाध्यता एक वस्तुगत सत्य है । अत: नैतिक कर्तव्य को बाध्यता आन्तरिक है, बाह्य नहीं । इस प्रान्तरिक शक्ति के कारण मनुष्य अपना नियम स्वयं है । बटलर अन्तर्बोध के आदेश अथवा अधिकार को सर्वोच्च मानता है श्रौर कहता है कि इस सर्वोच्चता को समझाने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अन्तर्बोध अपने इस अधिकार को अपने साथ रखता है कि वह हमारा प्रकृतिदत्त निर्देशक है और वह निर्देशक हमें हमारी प्रकृति के स्रष्टा द्वारा दिया गया है ।
धार्मिक मनोवृत्ति - हचिसन और शैफ्ट्सबरी अन्तर्बोध के सर्वोच्च प्रदेश को समझाने में असमर्थ रहे । बटलर नैतिक बोध के बदले अन्तर्बोध का प्रयोग करके तथा उसके आदेश को सर्वोच्च कहकर नैतिक बोधवाद की इस कमी को दूर करने का प्रयास करता है । बटलर के ऐसे सिद्धान्त के मूल में हमें उसके पादरी के व्यक्तित्व की झलक मिलती है । पादरी होने के कारण ही, सम्भव है, बिना व्यवस्थित दर्शन का प्रतिपादन किये वह कहता है कि प्रकृति का स्रष्टा बुद्धिमान है, वह परोपकारी है, वह मनुष्य को उन कर्मों के बारे में शिक्षा देता है जिन्हें करना उसका उद्देश्य है । और जब मनुष्य उन कर्मों को करता है तो उससे स्रष्टा को आनन्द देता है ।
समाज का श्रावयविक रूपक - जहाँ तक मानव समाज की श्रावयविक समग्रता के रूप का प्रश्न है, बटलर शैफ्ट्सबरी का पर्याप्त ऋणी है । बटलर के अनुसार समाज एक विधान की भाँति है जिसके अंश स्वतन्त्र रूप से कर्म नहीं कर सकते हैं । समाज को स्वभावतः श्रावयविक समग्रता मानकर वह हॉब्स के विरुद्ध यह समझाता है कि समाज स्वार्थी इकाइयों के समझौते का अस्वाभाविक परिणाम नहीं है । मनुष्य का स्वभाव इतना अधिक सामाजिक है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने सत्य स्वभाव के अनुरूप कर्म करने लगे तो समाज एक पूर्ण श्रावयविक विधान बन जायेगा जिसके अंग समग्र के हित के लिए क्रियाशील होंगे । बटलर के अनुसार हमें मानव स्वभाव से जितना स्पष्ट आभास इस बात का मिलता है कि हम मानव समाज के लिए बनाये गये हैं और अपने सजातीयों के आनन्द और कल्याण की वृद्धि करने के लिए हैं, उतना ही स्पष्ट श्राभास इस बात का भी मिलता है कि हम अपने जीवन, तथा व्यक्तिगत शुभ की चिन्ता करने के लिए बनाये गये हैं ।
स्वास्थ्य
२५४ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org