________________
निर्मित समझौते द्वारा निर्धारित किया गया है । वास्तव में बुद्धिवादियों की आलोचना का केन्द्र हॉब्स की राजनीतिक निरंकुशता है जिससे यह ध्वनि निकलती है कि उचित, अनुचित की धारणाएँ सामाजिक समझौते द्वारा निर्मित हैं और धार्मिक कर्तव्य से हमारा अभिप्राय उस शक्तिशाली की स्वतन्त्र इच्छाश्नों का भयवश पालन करने से है जो दण्ड और पुरस्कार द्वारा हम पर आरोपित की जाती हैं। हॉब्स के सिद्धान्त की रिक्तता को सिद्ध करने के लिए बुद्धिवादियों ने स्वार्थ और परमार्थ के प्रश्न को हल करने का प्रयास किया किन्तु वे असमर्थ रहे । हॉब्स के मनोवैज्ञानिक स्वार्थवाद को पराजित किये बिना बौद्धिक नैतिकता का सिद्धान्त सफलतापूर्वक स्थापित नहीं हो सकता । जब तक कि ग्रात्म- प्रेम और सामाजिक कर्तव्य में सन्तुलन स्थापित नहीं किया जायेगा तब तक सामाजिक कर्तव्य के औचित्य की अधिक-से-अधिक बौद्धिक अभिव्यक्ति बुद्धि और आत्म- प्रेम (जो मनुष्य के रागात्मक स्वभाव का स्वाभाविक अंग है ) में विरोध बढ़ाती जायेगी । यही कारण है कि बुद्धिवादी परोपकार और आत्म-प्रेम में समन्वय स्थापित नहीं कर पाये ।
शुभ का स्वरूप : अमूर्त - प्लेटो और अरस्तू के शुभ की धारणा को स्वीकार करते हुए बुद्धिवादियों ने समझाया कि सत्य सार्वभौम और वस्तुगत है; उसका स्वरूप बौद्धिक है । गणित और विज्ञान के स्वतः सिद्ध मूल सूत्रों की भाँति नैतिक सत्य भी सहज और बुद्धि ग्राह्य है । शुभ-अशुभ की धारणाएँ समझौते या स्वेच्छाचारी संकल्प का परिणाम नहीं हैं । नैतिक सत्य सार्वभौम है । नैतिक सत्य के सार्वभौम स्वरूप को ही काण्ट ने अपने सिद्धान्त में अत्यधिक महत्त्व दिया । कडवर्थ और क्लार्क एवं बुद्धिवादी सहजज्ञानवादी शुभ के मूर्त स्वरूप को समझाने में असफल रहे । जब हम यह पूछते हैं कि शुभ कर्म से क्या अभिप्राय है; उचित कर्म का क्या रूप है; तो हमें उचित अथवा शुभ की स्पष्ट व्याख्या नहीं मिलती वरन् विभिन्न शब्दों की भूलभुलैया में भटकना पड़ता है । बुद्धिवादियों का यह कहना कि उचित कर्म विवेकसम्मत, बुद्धिग्राह्य या स्वाभाविक है, पर्याप्त नहीं है । यह शुभ के स्वरूप का स्पष्टीकरण करना नहीं है, एक ही बात को घुमा-फिराकर कहना है ।
हॉब्सवाद से मुख्य भेद - निष्पक्षता का सिद्धान्त - वास्तव में हॉब्सवाद और प्लेटोवाद का मुख्य भेद यह है कि जहाँ पर हॉब्स ने आत्मस्वार्थ के लिए नैतिक आदेशों का पालन करने एवं दूरदर्शिता से काम करने के लिए कहा वहाँ प्लेटो के अनुयायियों ने नैतिक व्यक्ति को सजातीयों के लिए त्याग का
सहजज्ञानवाद ( परिशेष ) / २४६
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org