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स्थापित करता है जिसमें कि अपवाद के लिए कोई स्थान नहीं है । वह आदेश देता है, न कि सम्मति । उसका आदेश निरपेक्ष है और आदेश का निरपेक्ष रूप बतलाता है कि कर्म के परिणाम पर ध्यान नहीं देना चाहिए। नैतिकता का यथार्थतः परिणाम से कोई सम्बन्ध नहीं है । कर्मों का परिणाम उन्हें नैतिक मूल्य नहीं देता है । सिद्धान्त के अनुरूप किया हुआ कर्म ही उचित है । सच्चे रूप में मानवीय अथवा शुभ होने के लिए कर्म की उत्पत्ति आदेश के प्रति श्रद्धा से ही होनी चाहिए। यदि कर्म किसी निम्न प्रेरणा से लेशमात्र भी युक्त हो गया तो वह अनैतिक हो जायेगा। कर्म का शुभत्व उसके आन्तरिक बौद्धिक रूप पर निर्भर है।
नैतिक आदेश-निरपेक्ष प्रादेश-काण्ट की नैतिकता में दृढ़ श्रद्धा थी। वह तर्क द्वारा उसे सिद्ध नहीं करता है और न वह यही मानता है कि अनुभव उसके सिद्धान्त को समझा सकता है । वह एक दार्शनिक स्तर पर सदाचार के नियमों का प्रतिपादन करता है। उसका कहना है कि कर्तव्य का आधार मनुष्य की संवेदनशील प्रकृति नहीं है, परात्पर प्रात्मा ही नैतिक अनुभूति के मूल में है। जब व्यक्ति नतिक संकल्प के अनुरूप कर्म करता है तब वह अपना सम्बन्ध परमार्थ सत्ता के साथ स्थापित कर लेता है। दृश्यमान् जगत् की वस्तुओं के विश्लेषण द्वारा नैतिक कर्तव्य के स्वरूप को नहीं समझा सकते हैं। विश्व की विभिन्न परिस्थितियाँ, परिवेश, वातावरण, समाज आदि का ज्ञान, नैतिकता के मूल सिद्धान्त को नहीं समझा सकता । जिस प्रकार बुद्धि की धारणाओं को इन्द्रियजन्य विषयों में नहीं ढूंढ़ सकते हैं उसी प्रकार कर्तव्य का स्वरूप इस पर निर्भर नहीं है कि मनुष्य विशिष्ट वस्तु की इच्छा करता है अथवा उसमें किसी विशिष्ट कर्म करने की प्रवृत्ति है। मनुष्य का मानसिक व्यक्तित्व (psychological personality) कर्तव्य को नहीं समझा सकता। कर्तव्य का सम्बन्ध अनुभवात्मक आत्मा से भिन्न परात्पर आत्मा से है । नैतिकता व्यावहारिक बुद्धि की उपज है । वह अनुभव निरपेक्ष है । शुद्ध नैतिकता मनोविज्ञान पर आधारित नहीं है यद्यपि उसका प्रयोग मनोविज्ञान में कर सकते हैं। नैतिक नियमों को आरोपित करने के लिए मानव-स्वभाव का ज्ञान और विश्व का अनुभव-सापेक्ष ज्ञान आवश्यक है। किन्तु जहाँ तक केवल नैतिक ज्ञान का प्रश्न है, यह अनुभवनिरपेक्ष है । नैतिक बुद्धि ही मनुष्य को उसके निरपेक्ष एवं एकान्तिक कर्तव्य (unconditional duty) का ज्ञान देती है। उसके नियम अनभव-निरपेक्ष हैं। उसका आदेश परम आदेश (categorical imperative) है । इस आदेश
बुद्धिपरतावाद (परिशेष) / २१६
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