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नैतिक अनुभव - काण्ट की नैतिकता में दृढ़ श्रद्धा थी । उन्होंने नैतिकता को अपने तत्त्वदर्शन से संयुक्त किया। उनका विश्वास था कि नैतिक अनुभव के द्वारा ही मनुष्य अनुभवात्मक आत्मा (Empirical self) से ऊपर उठकर परात्पर आत्मा (Trascendental self) को प्राप्त कर सकता है और दृदयमान् जगत् से परे परमार्थ के साथ सम्बन्ध स्थापित कर सकता है । इच्छाओं और भावनाओं के जगत् में रमनेवाली आत्मा अनुभवात्मक श्रात्मा है । वह वस्तुजगत् का सदस्य है । परात्पर आत्मा परमार्थ सत्ता की सदस्य है । काण्ट के सम्मुख मनुष्य के दो रूप हैं— नैतिक प्रदर्शस्वरूप व्यक्ति और अनुभवात्मक व्यक्तित्व का अभिलाषी व्यक्ति । पहला व्यक्ति ही दूसरे व्यक्ति का प्रदर्श तथा मूल रूप है । अत: अनुभवात्मकव् यक्ति को आदर्श व्यक्ति का आदर करना चाहिए ।
मनुष्य स्वशासित है— काण्ट का कहना था कि मनुष्य स्वशासित (Autonomous) है। उसके कर्म श्रात्म-नियमित हो सकते हैं । श्रात्म-नियन्त्रित होना मनुष्य की स्वभावगत विशेषता तथा विशिष्ट अधिकार है। पशु एवं निम्न प्राणियों और मनुष्य में मुख्य भेद यही है । पशु परतन्त्र है । वह बाह्य संवेदनों से शासित है । मनुष्य दो धरातलों का प्राणी है । एक ओर तो वह संवेदनशील प्राणी ( Sentient being ) तथा सजीव सृष्टि का साझेदार है और जीवन के प्रति संवेदनशील है जिसके कर्मों को सुख और दुःख की भावनाएँ परिचालित करती हैं और इच्छाओं की तृप्ति एवं सुख ही जिसके कर्मों का स्वाभाविक प्रेरक है; दूसरी ओर वह बौद्धिक प्राणी है और अपने बौद्धिक संकल्प ( Rational will ) द्वारा वह सार्वभौम बुद्धि का पालन करता है । यही उसमें तथा निम्न प्राणियों में मुख्य अन्तर हैं । प्रकृति में प्रत्येक वस्तु नियमों के अनुरूप.. कर्म करती है । मनुष्य में इतनी शक्ति है कि वह नियम की धारणाओं एवं सिद्धान्तों को समझकर उनके अनुरूप कर्म कर सकता है । उसमें संकल्प है और यही वह शक्ति है जो आदेश देती है । नैतिक कर्तव्य की चेतना स्वतन्त्रता की चेतना के साथ अविच्छिन्न रूप से मिली हुई है । संकल्प करनेवाली श्रात्मा स्वतन्त्र है, वह परात्पर श्रात्मा है । नैतिक चेतना मनुष्य को यह दृढ़ विश्वास, दिलाती है कि वह स्वतन्त्र है । उसे इस सत्य का बोध कराती है कि उसे वही करना चाहिए जो कि उचित है अथवा उसे इच्छा के मार्ग में नहीं चलना चाहिए । नैतिक चेतना बतलाती है कि यदि व्यक्ति किसी कर्म को उचित : समझता है तो वह उस कर्म को करने की शक्ति भी रखता है । बौद्धिक प्राणी
बुद्धिपरतावाद ( परिशेष) / २१७
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