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बुद्धिपरतावाद (परिशेष)
... अर्वाचीन उग्र बुद्धिपरतावाद-काण्ट जीवन में नियमनिष्ठता का प्राधान्य-इमैनुअल काण्ट' के दर्शन में बुद्धिपरतावाद का चरम उत्कर्ष मिलता है । यह जर्मन दार्शनिक थे। इनका लगभग सम्पूर्ण जीवन कीनिंग्सबर्ग में व्यतीत हा । प्रारम्भ में वह अपने नगर के विद्यार्थी थे और फिर बाद में शिक्षक, लेखक तथा दार्शनिक बने। धार्मिक वातावरण में पलने के कारण काण्ट ने शान्त, नियमनिष्ठ तथा कर्तव्यपरायण जीवन को अनायास ही अपना लिया। अपने प्रदेश के तात्कालिक राष्ट्रीय और सामाजिक परिवेश के प्रभाववश भी उन्होंने नियमनिष्ठ और आत्मनिर्भर जीवन को स्वीकार किया। उनका जीवन नियमानुवर्तिता का जीवन था और उनका चरित्र नियमनिष्ठ का चरित्र । उनका नैतिक दर्शन कर्तव्य नियम का दर्शन है। वास्तव में वह नियमितता के प्रेमी थे; आयु की वृद्धि के साथ उनमें नियमितता की भी वृद्धि होती गयी । दार्शनिक काण्ट के बाह्य जीवन का रूप यान्त्रिक था, सब-कुछ निश्चित और निर्धारित था। सेबेरे उठने से लेकर रात को सोने तक उनके प्रत्येक कर्म-कॉफ़ी पीना, लिखना, भाषण देना, खाना-पीना, घूमना आदि-विधिवत् होते थे। उनके बारे में यह प्रसिद्ध है कि ठीक साढ़े चार बजे-चाहे कैसा ही मौसम हो-जब वह घूमने के लिए निकलते थे तब लोग उनका प्रसन्नवदन अभिवादन करते हुए अपनी घड़ियां मिलाते थे।
1. Immanuel Kant 1724-1804. 2. Prussia, Konigsberg.
२१६ / नीतिशास्त्र
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