________________
स्टोइक सिद्धान्त का प्राण है। बिना शासन और प्रजा के राजा व्यर्थ है । बिना भावना के बुद्धि मरघट के उस प्रदीप के समान है जिसका प्रकाश मृतकों के लिए है। भावनाशून्य जीवन में बुद्धि पंगु है। भावनाओं के विनाश के साथ ही वह निष्क्रिय हो जाती है । भावनाओं को कर्तव्य के मार्ग पर प्रारूढ़ करना बुद्धि का काम है। ___ कर्तव्य का सम्प्रदाय-स्टोइक्स ने, सिनिक सिद्धान्त के प्रतिकूल, विश्व में कर्तव्य का एक संगतिपूर्ण विधान देखा। कर्तव्य से उनका अभिप्राय उन कर्मों से नहीं है जिन्हें करने के लिए परिस्थितियाँ बाधित करती हैं बल्कि वे, जो विवेकसम्मत हैं। नैतिक और सांसारिक दृष्टि में भेद है। नैतिक दष्टि से व्यावहारिक शुभ परम शुभ है। विवेकशील व्यक्ति विश्व-प्रेमी होता है । वह सर्वत्र सार्वभौम विवेक की अभिव्यक्ति देखता है । वह पर-कल्याण को समझता है। न्याय, विश्व-प्रेम और मित्रता की भावना प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को मूल्यता प्रदान करती है। स्टोइक्स वास्तव में कर्तव्य के सम्प्रदाय के प्रवर्तक हैं। कर्तव्यनिष्ठ होना ही धार्मिक होना है। मनुष्य को न्यायप्रिय होना चाहिए। उसे अन्याय से विमुख करने के लिए भगवान का भय दिखाना उचित नहीं है। उसमें अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। स्टोइक्स का धर्म नैतिक विश्वास पर आधारित है। उन्होंने प्रचलित नैतिकता तथा नैतिक सिद्धान्तों को प्रभावित किया। सर्वप्रथम उन्होंने कर्तव्य के अधिकार और प्रभुत्व की धारणा को व्यवस्थित रूप दिया। बाद में काण्ट ने इस धारणा को भली-भाँति समझाया और अपने सिद्धान्त को इस पर आधारित किया। ___ सुख का स्थान-ऍपिक्यूरस के सिद्धान्त के विरुद्ध स्टोइक्स ने यह सिद्ध किया कि सब इच्छाएँ सुख के लिए नहीं होती हैं। इस सत्य को समझने पर भी उन्होंने एक अन्य मुल की। इस मनोवैज्ञानिक सत्य पर अपने नैतिक सिद्धान्त को आधारित कर उन्होंने कहा कि सुख शुभ नहीं है, उसको आचरण का ध्येय नहीं मानना चाहिए। किन्तु यह कहना उचित नहीं है। सुख कल्याण का अनिवार्य अंग है क्योंकि वह ध्येय की इच्छा में निहित है। ____महानता-स्टोइसिज्म के प्रादुर्भाव के समय यूनान के राष्ट्रीय जीवन का पतन हो चुका था। उस समय के नागरिक और राजनीतिक जीवन में स्वतन्त्रता और मानव-गौरव के बोध के लिए कोई स्थान नहीं रह गया था। लोगों का ध्यान जीवन के आन्तरिक सत्य की ओर आकर्षित हया। उन्होंने सर्वत्र सार्वभौम बुद्धि की अभिव्यक्ति ही देखी। बुद्धि ही मनुष्य को मनुष्य से युक्त
२१४ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org