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कर लेगा । अतः जिसके पास एक शुभ गुण है उसके पास सभी शुभ गुण होते हैं । विवेक द्वारा कर्मों को संचालित करने वाला व्यक्ति दुर्गुणों से मुक्त होता है ।
भावहीनता की स्थिति - स्टोइक्स के अनुसार भावहीनता की स्थिति को साधु ही प्राप्त कर सकता है । वास्तव में यह स्थिति साधु के स्वभाव को प्रकट करती है । स्टोक्स का कहना है कि भावशून्य साधु प्रकृति के अनुसार कार्य करता है । उसके जीवन और जनसाधारण के जीवन में महान् अन्तर है । उसका जीवन आध्यात्मिक और कल्याणप्रद है । बिना अन्य साधुत्रों का भला किये साधु अपनी उँगली तक नहीं उठा सकता । वह स्वतन्त्र होने पर भी भावनाओं और वासनाओं के वश में नहीं है । वह विकारशून्य वैरागी है । किन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि साधु को जनसाधारण की भाँति शारीरिक और मानसिक कष्ट नहीं होता । वह भूख-प्यास, रोग आदि के प्रति सचेत होते हुए भी उनकी ओर से विरक्त है । उसे मालूम है कि जीवन का ध्येय सद्गुण है । वह वास्तविक शुभ की प्राप्ति करना चाहता है । आत्मा के आनन्द का अनुभव करना चाहता है । श्रात्मा का श्रानन्द प्राप्त करनेवाला साधु सचमुच ही भावनारहित नहीं है । अतः 'भावशून्य' के यथाशब्द अर्थ नहीं लेने चाहिए | साधु केवल उन वासनाओं से पराङ्मुख है जो सामान्य मानस को प्रभावित करती है । उसके कर्म उसकी वास्तविक एवं बौद्धिक आत्मा द्वारा संचालित होते हैं ।
विश्वनागरिकतावाद - सिनिक सिद्धान्त ने बौद्धिक श्रेष्ठता के गुणगान करने में अपने सिद्धान्त को दुरात्मवादी बना दिया । उन्होंने सुकरात के कथन "ज्ञान सद्गुण है' की व्याख्या करने के क्रम में प्रचलित रीति-रिवाजों की निन्दा की, समाज के प्रति विद्वेषात्मक भाव रखा । फलस्वरूप सिनिक्स का बाह्य रूप अत्यन्त कुटिल और निषेधात्मक हो गया । विश्वनागरिकतावाद मानने पर भी वे उसकी स्थापना नहीं कर पाये । उनके इस अधूरे प्रयास को स्टोइक्स ने पूरा किया । सिनिक्स का व्यक्तिवाद उनके सिद्धान्त में महान् नागरिकतावाद - विश्व नागरिकतावाद - में परिणत हो जाता है । उन्होंने लोकरीतियों, रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, प्रचलित मान्यताओं में सत्य की खोज की और कहा कि न्याय, मित्रता, सहानुभूति की भावना आदि श्रेष्ठ हैं । बौद्धिक होने के नाते व्यक्ति विश्व का नागरिक है । उसका कर्तव्य मानवता के नियमों का पालन करना है ।
२१२ / नीतिशास्त्र
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