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को कैसे आरोपित किया जा सकता है तो स्टोइक्स कहते हैं कि जब प्राकृतिक जीवन का निर्देशन स्वतन्त्र संकल्प शक्ति और बुद्धि करती है तब उनके द्वारा संचालित आचरण शुभ कहलाता है । अथवा स्टोइक्स के अनुसार प्रकृति के अनुरूप जीवन अन्धप्रवृत्तियों और ग्रावेगों का सूचक नहीं है बल्कि वह स्वतन्त्र संकल्प र बुद्धि के अनुरूप जीवन है ।
भावहीनता (एपेथी ) या सुख-दुःख के प्रति विरक्ति को आदर्श मानकर स्टोक्स ने कहा कि साधु एक विकारशून्य वैरागी ( Impassive sage ) है । उसका विवेक निम्न प्रवृत्तियों की ओर से उदासीन है। वास्तव में, सभी जीवित प्राणियों की मूल प्रवृत्ति सुख की ओर नहीं, आत्मसंरक्षण की प्रोर होती है । विवेकी व्यक्ति यह जानता है कि तीव्र वासना और भावना अस्वाभाविक और बौद्धिक है । वे मानस की बौद्धिक और अस्वाभाविक विकृति हैं। शुभ के स्वरूप का अज्ञान ही वासना को उत्पन्न करता है । वासना श्रात्मा का रोग है । मनुष्य को वासनाओं के प्रति विरक्ति का भाव रखना चाहिए । उसे विवेक द्वारा भावनाओं पर नियन्त्रण रखना चाहिए ।
व्यावहारिक नैतिकता : ज्ञान, सद्गुण, शुभं प्रशुभ - सुकरात के अनुसार सद्गुण एक ही है और वह ज्ञान है । इस कथन की व्याख्या करते हुए स्टोक्स ने कहा कि ज्ञान सद्गुण है । वह शुभ और सक्रिय है और वह व्यावहारिक चेतना देता है । ज्ञानी अवश्य ही शुभ कर्म करता है । मनुष्य की आत्मा आत्मचेतन सक्रिय विवेक है इसलिए वह विवेक द्वारा सद्गुणों को समझकर उन्हीं के अनुरूप कर्म करता है । जहाँ तक सद्गुणों का प्रश्न है उनमें ऐक्य है । वे प्रपृथक् हैं । इसका कारण यह है कि वे एक ही बुद्धि के परिणाम हैं जो कि कर्मों द्वारा अभिव्यक्ति पा रही है । वे वास्तव में ज्ञान की व्यावहारिक 'चेतना के प्रकार हैं । व्यावहारिक विवेक बतलाता है कि कौन कर्म शुभ हैं, कौन शुभ हैं और कौन उदासीन हैं (न शुभ और न अशुभ) जहाँ तक शुभअशुभ का प्रश्न है, या तो वस्तुएँ शुभ ही होती हैं और या अशुभ ही उनमें मात्राओं का भेद नहीं है । मूर्खता, अन्याय, कायरता, असंयम अशुभ हैं । वे स्वभावतः हानिप्रद हैं, अपने-आपमें अवांछनीय हैं । व्यावहारिक विवेक, संयम, पराक्रम और न्याय शुभ हैं । ये सद्गुण हैं । स्टोइक्स के अनुसार मनुष्य विश्व का नागरिक है । उसका मानवता के लिए कर्तव्य है । स्टोइक्स का यह विश्वास था कि विवेकी व्यक्ति सद्गुणों के अनुसार कर्म कर सकता है और जो व्यक्ति एक सद्गुण का ज्ञान प्राप्त कर लेता है वह सभी सद्गुणों का ज्ञान प्राप्त
बुद्धिपरतावाद / २११
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