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की ओर उन्नति के रूप में हुआ है और वह अपने को धीरे-धीरे वातावरण के अनुरूप संयोजित कर रहा है । अन्तिम स्थिति पूर्ण सामंजस्य (Complete adjustment ) की स्थिति होगी। नैतिक विकास के ध्येय को समझाने के साथ ही विकासवादियों ने व्यक्ति समाज, स्वार्थ- परमार्थ एवं सुख कर्तव्य के विरोध को जैव व्याख्या द्वारा दूर करने का प्रयास किया ।
शुभ-अशुभ और सुख-दुःख के अर्थ – स्पेंसर का विश्वास था कि विकासवाद नैतिक समस्याओं को सुलझा सकता है । नीतिशास्त्र जिस ध्येय (सुख) के लिए प्रयास कर रहा है वह उसका प्रयोजन समझा सकता है । अथवा विकास द्वारा शुभ-अशुभ आचरण का अर्थ निर्धारित किया जा सकता है । स्पेंसर ने आचरण को यह कहकर समझाया कि वह कर्मों का ध्येयों के साथ सामंजस्य है । जीवन संघर्ष के क्रम में जीवयोनियाँ जीवन-संरक्षण के लिए आवश्यक विभिन्न ध्येयों के साथ अपने कर्मों को संयोजित करने का प्रयास करती हैं और यह क्रिया ही आचरण है । बही प्राणी जीवित रह सकता है जिसका कि प्रकृति या वातावरण के अनुकूल आचरण हो । जीवन का सार इस पर निर्भर है कि प्रान्तरिक सम्बन्धों का बाह्य सम्बन्धों से निरन्तर सामंजस्य हो | यह अंगी ( Organism) का वातावरण के साथ संयोजित होने का अनवरत प्रयास है । सभी प्रकार के आचरण का अध्ययन बतलाता है कि आचरण दो प्रकार के हैं - ( १ ) सामंजस्य स्थापित करने में सहायक, (२) उसमें सहायक । सामंजस्य की वृद्धि करनेवाले आचरण शुभ हैं और उसका ह्रास करनेवाले अशुभ | वह प्राचरण, जिसे शुभ के रूप में पुकारते हैं, सापेक्ष रूप से अधिक विकसित श्राचरण है और उस आचरण का नाम प्रशुभ है जो सापेक्ष रूप से कम विकसित है । निरपेक्ष रूप से शुभ श्राचरण वह है जो मंगी और वातावरण के बीच पूर्ण समत्व स्थापित करता है। ऐसा प्राचरण उस सुख को उत्पन्न करेगा जिसमें दुःख का मिश्रण नहीं है । प्राकृतिक विकास का जो प्रादर्श ध्येय है वही नैतिक दृष्टि से आचरण का मापदण्ड है । इससे यह चलता है कि जीवन का विकास और संरक्षण ही आचरण का सार्वभौमः ध्येय है । अर्थात् जो आचरण जीवन के संरक्षण और विकास में सहायक है वह शुभ है । शुभ की ऐसी परिभाषा देकर स्पेंसर ने यह सिद्ध किया कि शुभ-अशुभ परम और शाश्वत नहीं हैं अथवा इनका रूप वस्तुगत और सार्वभौम नहीं है । शुभ ध्येय की पूर्ति के लिए साधन, सहायक और निमित्तमात्र है । ध्येय के सम्बन्ध में जीवशास्त्र से प्रमाण देकर वह कहता है कि पूर्ण सामंजस्य की स्थिति को प्राप्त
१८२ / नीतिशास्त्र
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