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नितिकता से उत्पन्न होती है । वे यह भूल गये कि जैव और नैतिक नियमों में अनुरूपता नहीं है। जंव नियम योग्यतम की विजय एवं दुर्बल के दमन के 'सिद्धान्त के पोषक हैं। वे समर्थ तथा शक्तिशाली व्यक्तित्व की वृद्धि करते हैं, प्रभुत्वभाव तथा निर्मम आत्मभाव का समर्थन करते हैं। नैतिक विकास दुर्बल को आश्रय देता है। यह विकास, जैसा कि अलेग्जेण्डर ने अंगीकार किया, क्षद्र विचारों के ऊपर उच्च विचारों की विजय है। अलेग्जेण्डर का यह कथन यह स्वीकार करने के समान है कि जैव धारणा नैतिक मूल्यों को नहीं समझा सकती। इसमें सन्देह नहीं कि नतिक विकास प्रांशिक रूप से वातावरण और परिवेश पर निर्भर है। किन्तु प्रमुख रूप से वह शुभ संस्थाओं, शिक्षा, भाषा, स्वतन्त्र संकल्प और नैतिक अन्तर्ज्ञान पर निर्भर है। नैतिक माचरण सम्यक ज्ञान की क्रमिक वृद्धि का सूचक है। वह प्राकृतिक चयन द्वारा निर्देशित न होकर विवेकसम्मत और स्वेच्छाकृत है। प्रकृति की अनुकूलता देखकर आचरण करनेवाला व्यक्ति अवसरवादी है, न कि नैतिक । नैतिक मनुष्य सत्य के लिए अडिग होकर आचरण करता है । यही उसके लिए शोभन है । परिस्थिति के अनुकूल प्राचरण उच्च आचरण नहीं है, वह पशु-धरातल का सूचक है । ऐसा आचरण मनुष्य और राष्ट्र को उन्नत नहीं बना सकता।
नैतिक कठिनाई-विकासवाद एवं नैतिक मान्यताओं का प्राकृतिक इतिहास विभिन्न जीवयोनियों के जीवन के बारे में बोध देता है। वह बतलाता है कि जीवन-संघर्ष ने आचरण के किन रूपों को जन्म दिया है । नैतिक मान्यताओं, 'नियमों और प्रत्ययों के मूल में कौनसी भौतिक परिस्थितियाँ हैं। इसमें सन्देह नहीं कि ऐसी ऐतिहासिक पद्धति का कुछ सीमा तक निराकरण नहीं किया जा सकता, किन्तु साथ ही इस सत्य को भी नहीं भुलाया जा सकता कि वह ज्ञान को तथ्यात्मक जगत् तक सीमित कर देता है । अतः पूर्ण रूप से उस पद्धति को अपनाना, मूल्य को भूलकर तथ्य को महत्त्व देना है। नैतिकता सामाजिक विकास के तथ्यात्मक वर्णन को महत्त्व नहीं देती । वह जानना चाहती है कि समाज की कौन-सी स्थिति आदर्श स्थिति है। नैतिक जीवन आदर्श से शासित है, न कि भूतकालीन घटनाओं और तथ्यों से । वह साभिप्राय जीवन है और हेतुवाद द्वारा समझाया जा सकता है । वह ध्येय एवं आदर्श द्वारा निर्देशित है। विकासवादियों ने उसे वैज्ञानिक रूप देने की आकांक्षा से जीवशास्त्र पर आधारित कर दिया और इस भाँति वास्तविकता से आदर्श की उत्पत्ति तथा नितिकता से नैतिकता के विकास को समझाना चाहा। विकास-क्रम का
विकासवादी सुखवाद | २०१
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