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कारण वह सिद्धान्त अत्यन्त अनाकर्षक और अप्रिय बन गया एवं निर्लज्जता
और विद्वेष (सामाजिक सदाचार का तिरस्कार) के अर्थ में 'सिनिक' शब्द प्रचलित हो गया। ____ध्येय : सद्गुण-मनुष्य बौद्धिक है । जीवन का परम ध्येयं सद्गुण है। वह अपने-आपमें परिपूर्ण है । सद्गुणी व्यक्ति को किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। अपने में सम्पूर्ण होना और आवश्यकताओं से ऊपर उठना ईश्वरीय गुण है । ऐसा व्यक्ति अपने चारों ओर के वातावरण और विभिन्न नियमों-सामाजिक, राजनीतिक आदि-से स्वतन्त्र है। वह आत्मनिर्भर है। उसका कल्याण उसी पर निर्भर है। सद्गुणयुक्त जीवन व्यतीत करने के लिए ज्ञान अनिवार्य है।
सुखवाद का खण्डन-सिनिक्स सुकरात के जीवन के उस पक्ष से प्रभावित हुए जो आत्मनिर्भरता और इच्छाओं से स्वतन्त्रता का सूचक है। इसी को उन्होंने अपने सिद्धान्त का मूल आधार माना। सुकरात का जीवन आत्मसंयम का जीवन था । वह परिस्थितियों से स्वतन्त्रता, पूर्ण आत्म-निर्भरता और प्रात्मपर्याप्तता के आदर्शों का मूर्त रूप था। इन आदर्शों को सिनिक्स ने अपनाया
और उन्हें अपनाने में वैराग्यवाद को स्वीकार कर लिया। उन्होंने सुखवाद की तीव्र आलोचना की । सुखवाद की असत्यता, अज्ञान एवं मूर्खता को समझाने के लिए इसके संस्थापक, एण्टिस्थीनीज़ ने यहाँ तक कहा कि 'सुख के वश में होने से अच्छा पागल हो जाना है।' उसके कथनानुसार मनुष्य को भावनाओं और इच्छात्रों के अधीन नहीं रहना चाहिए। उसे इन्द्रियजित् या आत्मविजेता होना चाहिए। सुख पाप है, वह जीवन का ध्येय नहीं है। बुद्धि से शासित व्यक्ति को पाप, दोष, बुराई, दुर्गण आदि छ भी नहीं सकते हैं। वह सद्गुणी है। - सिनिक जीवन-विद्वेषपूर्ण विवेक (Cynic wisdom) बौद्धिक आत्मा के स्वामित्व के उच्च स्वाभिमान का सूचक है । वह मानव-चेतना की परिस्थितियों के ऊपर पूर्ण विजय का ज्ञापक है। वह आत्म-आरोपित नियम के अतिरिक्त किसी अन्य नियम को नहीं मानता। ऐसा विवेकयुक्त व्यक्ति इच्छानों की दासता के विश्व का राजा है । इस तथ्य को आधार मानते हुए जिन आचरण के नियमों को सिनिक्स ने स्वीकार किया वे अत्यन्त प्रभावात्मक और अव्यावहारिक हैं । आत्मा की पूर्णता प्रात्मवर्जन (Self-denial) में है । इच्छात्रों को न्यूनतम कर देना चाहिए । प्रकृति के अनुरूप सरल और स्पष्ट जीवन बिताना चाहिए । प्राकृतिक आचरण के नाम पर उन्होंने लोकमत का तिरस्कार किया,
२०६ / नीतिशास्त्र
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