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से मनुष्य की स्थिति तक पहुँच गया है। यह तथ्य महान् उन्नति का सूचक है । मनुष्य की यह श्रेष्ठता यह सिद्ध करती है कि मनुष्य का विकास निम्नस्थिति से उच्चस्थिति की ओर उन्नति के रूप में हुआ है- जैव विकास नैतिक विकास भी रहा है ।" नीतिज्ञ - स्पेंसर, लेस्ली स्टीफेन, एलेजेण्डर प्रादिडार्विन के ऐसे सिद्धान्त से अत्यधिक प्रभावित हुए । उन्होंने विकासवाद का व्यापक प्रयोग करना चाहा और नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, संस्थानों आदि की उत्पत्ति और उन्नति को उसके द्वारा समझाना चाहा । नैतिकता को उन्होंने विकास का परिणाम माना। स्पेंसर तो स्पष्ट रूप से कहता है कि 'मैं इसे नैतिक विज्ञान का कार्य मानता हूँ कि जीवन के नियमों और अस्तित्व की परिस्थितियों से यह निगमन किया जाय कि किस प्रकार के कर्म अनिवार्य रूप से सुख की उत्पत्ति करते हैं और किस प्रकार के कर्म दुःख की । स्पेंसर तथा अन्य विकासवादी सुखवादियों ने अपने सिद्धान्त में जैव नियमों से नैतिक नियमों के निगमन पर इतना अधिक महत्त्व दिया है कि सिजविक ने उनके सिद्धान्तों को निगमनात्मक सुखवाद ( Deductive Hedonism) कह दिया । विकासवादी सुखवादियों का यह विश्वास था कि नैतिक भावनात्रों, निर्णयों, अभ्यासों, मान्यताओं और नियमों के उद्गम तथा उनकी प्रकृति और अभिप्राय को विकासवाद भली-भाँति समझा सकता है । इस विश्वास के आधार पर उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि विकासवाद नीतिशास्त्र को वैज्ञानिक और प्राकृतिक आधार दे सकेगा ।
विकासवादी सुखवाद
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विकासवादी नीतिज्ञ : स्पेंसर - स्पेंसर प्रथम विचारक था जिसने कि जैव विकासवाद का व्यवस्थित रूप से नीतिशास्त्र में प्रयोग किया। दर्शन के क्षेत्र में हीगल और कौन्ते ने विकासवाद के लिए स्थान बना दिया था किन्तु नीतिशास्त्र में विकासवाद के लिए स्थान बनाने का श्रेय स्पेंसर को ही है । स्पेंसर से प्रभावित होकर लेस्ली स्टीफेन और एलेग्ज़ैण्डर ने उसके मूलंगत सिद्धान्त को स्वीकार करते हुए तथा उससे थोड़ी भिन्नता रखते हुए नैतिक सिद्धान्त का
1. Wheelright, pp. 112-114. 2. Evolutionary Hedonism. 3. Herbert Spencer, 1820-1903.
१८० / नीतिशास्त्र
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