________________
सम्बन्ध नहीं है । स्पेंसर बैंथम के साथ स्वीकार करता है कि नैतिक मान्यताओं का मूल्यांकन करने के लिए वस्तुगत मापदण्ड की खोज करनी चाहिए । किन्तु वह उसके विरोध में कहता है कि सुख को मापदण्ड नहीं माना जा सकता क्योंकि वह भावनामात्र एवं प्रात्मगत है। वह वस्तुगत नहीं, उसे तौल नहीं सकते । नैतिक मान्यताओं की आधारशिला शारीरिक जीवन (Physical life) है । जीवशास्त्री होने के कारण स्पेंसर को शारीरिक स्वास्थ्य की चिन्ता थी। अतः उसने शारीरिक जीवन को नैतिक मापदण्ड माना। बैंथम के विरुद्ध वह कहता है कि व्यक्ति का कर्तव्य 'अधिकतम संख्या का अधिकतम सुख' नहीं हैं, किन्तु मानव-समाज के जीवन की रक्षा करना है । शुभं आचरण वह नहीं जो केवल वैयक्तिक जीवन को ही महत्त्व देता है बल्कि वह जो समाज के सम्पूर्ण जीवन को ध्यान में रखता है। स्पेंसर के सिद्धान्त में परमस्वार्थवाद के लिए स्थान नहीं है। विकासवाद बताता है कि प्रात्मत्याग और आत्मसंरक्षण दोनों ही प्राचीन हैं । शुभ आचरण वह है जो अपने और दूसरों के जीवन की उन्नति में समान रूप से सहायक है। प्रश्न उठता है कि जीवन को कैसे नाप सकते हैं ? स्पेसर कहता है. कि जीवन को उसकी लम्बाई और चौड़ाई से नाप सकते हैं। जीवन की लम्बाई से उसका अभिप्राय दीर्घ-स्थायी जीवन से है, जो अधिकतम संख्या के दीर्घायु का सूचक है । चौड़ाई से अभिप्राय उन विभिन्न व्यापारों से है जिन्हें सम्पादित करने की उच्च (अधिक विकसित) पशु योग्यता रखता है। मानव-जीवन की जटिलता तथा विस्तार का अध्ययन करने से पता चलता है कि व्यक्ति की अभिरुचियों तथा इच्छात्रों की विकासजन्य वृद्धि के कारण समाजगत सामंजस्य दुरूह होता जा रहा है । किन्तु इस दुरूहता के साथ उसकी सफलतापूर्वक संयोजित होने की योग्यता और शक्तियाँ क्रमश: बढ़ती जा रही है। जब यह योग्यता अपनी पूर्णता को प्राप्त कर लेगी, तब व्यक्ति और वातावरण के बीच पूर्ण समत्व स्थापित हो जायेगा। इस वृद्धि को प्राप्त होती हुई सामंजस्य की शक्ति को ही स्पेंसर चौड़ाई कहता है। उसके अनुसार कर्म और आचरण के औचित्य-अनौचित्य को निर्धारित करने के लिए यह जानना आवश्यक नहीं कि उनका परिणाम सुखप्रद है या दुःखप्रद; किन्तु उसके लिए यह जानना आवश्यक है कि वे जीवन के परिमाण की वृद्धि में कितने सहायक हैं.। स्पेंसर के अनुसार जीवन के परिमाण की लम्बाई-चौड़ाई को प्राप्त करना ही ध्येय है। वह कहता है कि वही आचरण एकमात्र शुभ है जो जीवन के संरक्षण में सहायक है । उसके अनुसार नैतिक उद्देश्य के लिए यह मान लेना अनिवार्य है कि जो १८४ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org