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विकासवादी सुखवाद : सामान्य परिचय
विकास की प्राकृतिक और भाववादी व्याख्या-विकासवाद यह मानता है कि विकास उन्नति की एक क्रमिक श्रृंखला है, जिसमें प्रारम्भ, पद्धतिक्रम और अन्त मिलता है। विकसित होती हुई वस्तु का एक विशेष स्थिति से मारम्भ होता है । फिर वह विकास की अनेक जटिल स्थितियों से गुजरती है
और इस भांति अपनी अन्तिम स्थिति को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ती है। विकास का प्रारम्भ अतीत के गर्भ में छिपा हुआ है, अन्तिम स्थिति भविष्य में प्रदश्य है, केवल पद्धतिक्रम (मध्य की स्थिति) को ही समझा जा सकता है। जीवन में सर्वत्र विकास मिलता है। वह एक विश्वव्यापी नियम है। नैतिक जीवन में भी विकास का क्रम मिलता है जिसे हम दो प्रकार से समझा सकते हैं; एक प्राकृतिक और दूसरा प्रादर्शवादी । डाविन, स्पेंसर और उसके अनुयायियों ने विकास को प्राकृतिक ढंग से समझाना चाहा, इसके लिए उन्होंने ऐतिहासिक पद्धति को अपनाया और नीतिशास्त्र को पूर्ण रूप से वैज्ञानिक आधार देने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि नैतिक जीवन को मानव-जाति के प्रारम्भिक जीवन के सम्बन्ध में ही समझ सकते हैं । नैतिक मान्यताएँ प्राकृतिक घटनाओं की भाँति पूर्व की घटनाओं से कार्य-कारण रूप से सम्बन्धित हैं। इसके विपरीत हीगल, ग्रीन, बेडले, बोसेंके आदि ने कहा कि नैतिक जीवन को ध्येय या नैतिक पादर्श द्वारा समझाया जा सकता है। उन्होंने नीतिशास्त्र को प्रादर्श विधायक विज्ञान माना, उसे यथार्थ विज्ञान का रूप नहीं दिया।
. विकासवादी सुखवाद / १७५
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