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तक सचेत है। उसे उसके कर्मों के लिए कहाँ तक उत्तरदायी ठहरा सकते हैं। उसके कर्म भावना-प्रधान हैं या बुद्धि-प्रधान । मानव-चरित्र के विकास में वंशानुगत गुणों, वातावरण, परिवेश आदि का कितना हाथ है। इस प्रकार मनोविज्ञान मानसिक घटनाओं का अध्ययन करता है । नीतिशास्त्र मनुष्य के मानसिक जीवन का अध्ययन कर नैतिक निर्णय देता है। कर्मों के बाह्य परिणामों के आधार पर निर्णय देना अनुचित है । नैतिक दृष्टि से ध्येय, प्रेरणा और मानसिक प्रवृत्तियों को समझना आवश्यक है। बाह्य परिणाम कर्ता के सत्य स्वभाव एवं चरित्र को पूर्ण रूप से प्रकाशित नहीं करते । वह यह अवश्य बताते हैं कि उसके कर्मों की दूसरों पर क्या प्रतिक्रिया हुई । अरस्तू ने कहा है कि नीतिशास्त्र उस मानवीय शुभ को निर्धारित करता है जिसका सम्बन्ध मानव-व्यक्तित्व से है । इसी तथ्य को मानते हुए आधुनिक सभी नीतिज्ञ यह कहते हैं कि उनकी खोज का मुख्य लक्ष्य मानव का मानसिक धरातल है । नैतिक जिज्ञासा मनश्चेतना के ज्ञान के पश्चात् ही अपने मार्ग में अग्रसर हो सकती है। यही कारण है कि विभिन्न नीतिज्ञों ने अपने सिद्धान्तों की पुष्टि मनोविज्ञान द्वारा की है। सुखवादियों ने मनुष्य को ऐन्द्रिक मानकर अपने सिद्धान्त को समझाया है और बुद्धिपरतावादियों ने मनुष्य को शुद्ध बुद्धिमय समझा है। तीसरे प्रकार के विचारक वे हैं जो मनुष्य को बुद्धि और भावना का योग मानते हैं। मनुष्य की प्रकृति के ज्ञान के अनुरूप ही इन विचारकों ने नैतिक आदर्श के स्वरूप को समझाया है । मनुष्य का परम वांछनीय शुभ उसकी स्वाभाविक प्रकृति का प्रतिबिम्ब है, यह सभी जानते हैं। किन्तु अपनी-अपनी मनोवैज्ञानिक धारणाओं के आधार पर उनमें उसके स्वरूप के बारे में मतभेद है। जैसा कि सिद्धान्तों के अध्ययन से स्पष्ट हो जाएगा कि मनश्चेतना का अपूर्ण ज्ञान ही एकागी और अपूर्ण नैतिक सिद्धान्तों का जनक है। जीवन के वांछनीय शुभ को समझने के लिए मनुष्य की मनश्चेतना तथा उसके व्यक्तित्व का उचित ज्ञान अनिवार्य है । वास्तविक तथ्यों के आधार पर ही परमसाध्य और उसको प्राप्त करने के साधनों पर प्रकाश डाला जा सकता है। विभिन्न नतिक विवाद -प्राचरण का स्वरूप, निर्णीत कर्म के निर्माणात्मक अंग, उद्देश्य, प्रेरणा, संकल्प एवं मनःशक्ति की स्वतन्त्रता आदि अपनी पुष्टि मनोविज्ञान के ही द्वारा करते हैं। नैतिक निर्णय मानव-स्वभाव के पूर्ण अध्ययन के पश्चात् ही सम्भव है। नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान के घनिष्ठ सम्बन्ध को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता। महत्त्वपूर्ण नैतिक धारणाएँ मनोवैज्ञानिक धारणाएँ भी
६२ / नीतिशास्त्र
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