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आचरण को नैतिक दष्टि से अशुभ नहीं कह सकते हैं। इस प्रकार संकल्पशक्ति को इस अर्थ में स्वतन्त्र माननेवाले सैद्धान्तिकों के लिए दढ़-संकल्प का कोई मूल्य नहीं है। इस दृष्टि से मानव-स्वभाव में संगति और एकता देखना व्यर्थ है और ऐसी स्थिति में नैतिकता का लोप तो हो ही जायेगा, साथ ही मनुष्य का सामाजिक जीवन भी असम्भव हो जायेगा । सामाजिक जीवन की पूर्णता व्यक्तियों के सम्यक् चरित्र पर निर्भर है। प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक अपने तथा अन्य लोगों के चरित्र को समझता है, उनके आचरण के बारे में अपनी सम्मति दे सकता है। वह अपने तथा दूसरों के कर्मों का स्पष्टीकरण चरित्र तथा परिस्थिति-विशेष के नाम पर करता है और उस परिस्थिति से सम्बद्ध कर्तव्य के बारे में भी सचेत है। किन्तु संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता के पोषक प्रेरणाहीन कर्मों को ही स्वतन्त्र कर्म कहते हैं। नैतिक मनुष्य के लिए बिना उस प्रेरणा के कर्म करना, जो कि कर्ता को बौद्धिक रूप से कर्म करने के लिए प्रेरित करती है, पशु-जीवन को स्वीकार करना है। वह अन्ध-प्रवृत्तियों तथा आवेगों का दास नहीं है, अपने चरित्र का निर्माता तथा अपने आचरण के लिए उत्तरदायी भी है। उसकी संकल्प-शक्ति उसकी प्रात्मा है । संकल्प-शक्ति के बाह्य रूप द्वारा उसकी आत्मा सन्तोष प्राप्त करती है। यदि हम इस अर्थ में संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता को न मानें तो पाप-पुण्य, शुभ-अशुभ, उचितअनुचित, आदि नैतिक प्रत्यय अस्तित्वहीन हो जाते हैं । यदि मनुष्य की संकल्पशक्ति उसे समझ-बूझकर कर्म नहीं करने देती और अन्धड़ की तरह आवेश में आकर उसे ऊपर-नीचे गिराती है तो निश्चय ही नैतिक आदेश काल्पनिक हैं। संकल्प-शक्ति का मुक्त शासक की भांति प्रत्येक क्षण ऐसा नवीन सृजन करना कि वह भूत और वर्तमान से असम्बद्ध हो-मानव-चरित्र की स्थिरता और अविच्छिन्नता को धूल में मिलाना है । नैतिकता दृढ़-चरित्र से ही उद्भूत होती है। आवेगपूर्ण प्रेरणाहीन कर्म और नैतिकता आपस में विरोधी हैं तथा एकदूसरे के विनाशक हैं।
प्रात्म-निर्णीत कर्म : नियतिवाद और अनियतिवाद-निर्णीत कर्म के विश्लेषण ने यह बतलाया कि आत्मा और संकल्प-शक्ति एक हैं। प्रात्मा ही ज्ञात रूप से इच्छित ध्येय की प्राप्ति के लिए प्रयास करती है । संकल्प-शक्ति का स्वरूप आत्मा के स्वरूप पर निर्भर है। उस आत्मा का क्या स्वरूप है जिसके द्वारा कर्म किये जाते हैं ? क्या इसका स्वरूप निर्धारित नैतिक गुणों, वंशानुगत विशेषताओं, भूतकालीन कर्मों और भावनाओं का परिणाम है ? अथवा क्या
९४ / नीतिशास्त्र ।
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