________________
लियों ने बाह्य के अतिरिक्त आन्तरिक पक्ष को भी महत्त्व दिया। उसने इस बात की ओर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया कि प्रेरणा, उद्देश्य एवं चरित्र को समझना आवश्यक है और बाह्य नियमों के सविनय पालन को अनैतिक माना । उसके अनुसार नैतिक नियम प्रात्म-आरोपित हैं। प्रेरणा की पवित्रता नैतिकता का चिह्न है। नैतिक कर्म 'हृदय की पवित्रता' की अभिव्यक्ति हैं। मन, वचन और कर्म से नैतिक होना अनिवार्य है। .. नैतिक नियम का स्वरूप : प्रान्तरिक होते हुए भी वस्तुगत और सार्वभौम–बाह्याचार से मुक्त होने के पश्चात् वह स्थिति आयी जबकि व्यक्ति ने अपनी प्रात्मगत कठिनाइयों और सीमानों से अपने नैतिक ज्ञान को संकुचित कर दिया। किन्तु पूर्ण रूप से नैतिक होने के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रात्मगत सीमाओं से ऊपर उठे; आत्मगत से वस्तुगत, वैयक्तिक से वैश्विक एवं अपूर्ण से पूर्ण की ओर जाये + अथवा उसके लिए प्रान्तरिक और बाह्य नियम की एकता समझना अनिवार्य है। इस सन्दर्भ में नैतिक नियम आत्मगत होते हए भी वस्तुगत हैं, सार्वभौम हैं। नैतिकता का मूल्य सार्वभौम है। बिना इसके सार्वभौम मूल्य को समझे व्यक्ति एवं राष्ट्र नैतिक प्रगति की अोर नहीं बढ़ सकते । उन्हें उनके स्वभाव, वातावरण और परिवेश की सीमाएँ बाँध देती हैं।
नैतिक नियम विशिष्ट व्यक्तियों, जातियों और राष्ट्रों तक सीमित नहीं हैं। नैतिक विचार और मान्यताएँ व्यक्ति एवं जाति-विशेष की थाती नहीं हैं, उनका मूल्य सार्वभौमिक है। सब प्राणियों के लिए वे समान रूप से अनिवार्य हैं और देश और काल की परिधि से मुक्त हैं । वे सब देश और काल में समान रूप से लागू हैं । उनका सार्वभौमिक मूल्य यह बताता है कि वे स्वतः वांछनीय हैं। उनका आदेश आत्मा के सत्य का आदेश है, अत: निरपेक्ष है। ज्ञानी (नैतिक ज्ञानी) व्यक्ति ही इस निरपेक्ष तथा आन्तरिक आदेश को समझ सकते हैं। ज्ञान सद्गुण है, इसलिए सत्य का ज्ञान ज्ञानियों को सत्य की ओर खींचता है, सदाचारी बनाता है। सदाचार के नियमों को मनुष्य स्वयं अपने ऊपर आरोपित करता है । पण्डितों, शास्त्रों और श्रुतियों की दुहाई देकर नैतिक नियम दूसरों पर आरोपित नहीं किये जा सकते। स्वेच्छापूर्वक तथा समझ-बूझकर सदाचार के मार्ग को ग्रहण करना ही नैतिकता है। __सदाचार का यह मार्ग प्रानन्द का मार्ग है । यह सदाचारियों को आकर्षित करता है। उनके जीवन को आह्लादमय बनाता है। किन्तु जो व्यक्ति अपने नैतिक ज्ञान पर अविवेक का पर्दा डाल देते हैं और भयवश नियमों का पालन
११२ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org