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मात्मा (बुद्धि मय और भावनामय) की अभिव्यक्ति है । भावना, इच्छा, विवेचन, निर्णय बुद्धि प्रादि एक ही कर्म के अविच्छिन्न अंग हैं । ये कर्ता के चरित्र और व्यक्तित्व के सूचक हैं।
असामाजिक, अव्यावहारिक तथा अनैतिक-मनोवैज्ञानिक सुखवाद अन्तर्चेतनाशून्य तथा नैतिक संज्ञाहीन व्यक्तियों के आदर्श को सम्मुख रखता है। यह स्थूल इन्द्रियजन्य सुख को महत्त्व देता है। इसके अनुसार मनुष्य पूर्ण "रूप से स्वार्थी है। वह निरन्तर वैयक्तिक सुख की खोज करता है। इस प्रकार 'सखवादियों का दृष्टिकोण वैयक्तिक, असामाजिक और अनैतिक है। जिस परम स्वार्थवाद का उन्होंने प्रतिपादन किया वह अव्यावहारिक और अवास्तविक है । समाज में वही व्यक्ति रह सकता है जो सामाजिक कर्तव्यों तथा कर्मों को करता है। वही व्यक्ति समाज में रहकर अपने अधिकारों की मांग कर सकता है जो दूसरे के अधिकारों को समझता है। सुखवाद के अनुसार सामाजिक सुख अथवा सर्वकल्याण का कोई महत्त्व नहीं, वह हेय है । स्नेह, दया, ममता से दूर रहकर व्यक्ति अपने तत्कालीन सुख की चिन्तां करता है। यदि सुखवादी धारणा को सजीव और वास्तविक मान लें तो ऐसे इन्द्रियरत परम स्वार्थी प्राणी के लिए समाज में कोई स्थान नहीं है। पशु-पक्षी तक अपने बच्चों तथा निकटवासियों के लिए त्याग करते हैं। अपत्य स्नेह के आगे वे तत्कालीन तीव्र सुख को भूल जाते हैं। मनुष्य में उच्च प्रवृत्तियाँ हैं। उसमें प्रात्म-त्याग की आश्चर्यपूर्ण शक्तियाँ और सम्भावनाएं हैं। वह अपने सत्य रूप में परमार्थी है। उसकी बद्धि उसे विश्वस्नेह से संयुक्त करती है। मनुष्य की इन प्रवृत्तियों का निराकरण करना मनुष्यत्व का निराकरण करना है। सुखवाद सब व्यक्तियों को समान रूप से स्वार्थी मानता है । साधु-प्रसाधु, पापी-पुण्यात्मा, चोर-देशप्रेमी, सब एक ही श्रेणी के हैं। किन्तु वह भूल जाता है कि मित्रता प्रत्येक के चरित्र के अनुरूप होती है और यह प्रत्येक व्यक्ति के बौद्धिक, मानसिक तथा नैतिक विकास की सूचक है । सच तो यह है कि स्वार्थ सुखवाद का सिद्धान्त "नैतिक चेतना के सम्मुख एक घृणित रूप प्रस्तुत करता है", और वह अनैतिक भी है । यदि सब व्यक्ति स्वभाववश इन्द्रिय-सुख की खोज करते हैं तो 'नैतिक चाहिए' अर्थहीन है। प्राकृतिक एवं स्वाभाविक शक्तियों के प्रवाह में बहनेवाला व्यक्ति उचितअनुचित को नहीं समझ सकता । अथवा जैसा कि ग्रीन ने कहा है "एक व्यक्ति,
1. Mackenzie-A Manual of Ethics, p. 171.
१३० / नीतिशास्त्र
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