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सुखवाद (परिशेष)
अर्वाचीन सुखवाद प्राचीन सुखवाद से भिन्नता–प्राचीन और अर्वाचीन सुखवाद दोनों ही मूलतः यह मानते हैं कि जीवन का परम ध्येय सुख है। किन्तु फिर भी दोनों में अन्तर है। यह अन्तर मानव-संस्कृति और सभ्यता के विकास का अन्तर है। आधुनिक सुखवादियों ने अपने सिद्धान्त को दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक आधार देने का प्रयास किया। प्राचीन सुखवाद मनोवैज्ञानिक है। मनुष्य स्वभाववश सुख की खोज करता है। आधुनिक सुखवाद इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार करने के साथ ही इसे नैतिक मान्यता भी देता है कि मनुष्य को सुख की खोज करनी चाहिए। प्राधुनिक सुखवादियों ने यह भी स्वीकार किया कि व्यक्ति को जनसामान्य के सुख की खोज करनी चाहिए। अतः उन्होंने यह जानना चाहा कि व्यक्ति किस प्रेरणा के वशीभूत होकर वैयक्तिक सुख के साथ ही जनसामान्य के सुख के लिए प्रयास करता है। हॉब्स, बैंथम, मिल, स्पैंसर, सिजविक आदि ने इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया। उसमें वे कहाँ तक सफल हुए यह उन विचारकों के सिद्धान्तों का अध्ययन करने से स्पष्ट होगा। प्राचीन सुखवाद निराशावादी था। आधुनिक सुखवाद प्राशावादी है। स्पेंसर का तो यहाँ तक विश्वास था कि सुख सद्गुण का अनिवार्य परिणाम है। विकास की अन्तिम स्थिति पूर्ण सुख की स्थिति होगी। ___ कुछ प्राधुनिक सुखवादियों ने अपने सिद्धान्त को वैज्ञानिक और तार्किक . आधार देना चाहा। उन्होंने नीतिशास्त्र को जीवशास्त्र और विकासवाद से संयुक्त किया और नैतिक मान्यताओं की ऐतिहासिक और प्राकृतिक व्याख्या
१३४ / नीतिशास्त्र
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