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तीव्रता के आधार पर कौन सुख श्रेष्ठ है ? वस्तुगत मापदण्ड कैसे सम्भव है ? मनोवैज्ञानिक सुखवाद के पास इसका कोई उत्तर नहीं है। सुखवाद के अनुसार सब सुख समान हैं। किन्तु जैसा कि अभी देख चुके हैं, सुख का स्वरूप उस वस्तु पर निर्भर है जो कि उसके उत्पादन का कारण है और वह भोक्ता (अनुभवी) के व्यक्तित्व पर भी निर्भर है। सुख में केवल मात्राओं (अधिक या कम तीव्र) का भेद नहीं है किन्तु गुणात्मक भेद भी है। इस तथ्य को मिल स्पष्ट रूप से स्वीकार करता है। .. मनोवैज्ञानिक भ्रान्ति : चयन के क्रियात्मक और हेत्वात्मक पक्ष-सुखवाद के इस सिद्धान्त का (कि सुख ही एकमात्र इच्छा का विषय है) मूल आधार मनोवैज्ञानिक भ्रान्ति है। वह सुख की भावना को कर्म का प्रवर्तक मानता है । भावना कर्म का अनिवार्य अंग अवश्य है किन्तु उसकी प्रवर्तक नहीं है। मनुष्य सब कर्म सुख की इच्छा से प्रेरित होकर नहीं करता, किन्तु इच्छित वस्तु की प्राप्ति उसे सुख देती है। अपने व्यक्तित्व के अनुरूप वस्तु की वह इच्छा करता है । समाज-सुधारक, देश-प्रेमी, परोपकारी, विषयी, इन सभी की इच्छा का विषय उनके चरित्र और व्यक्तित्व के अनुरूप होता है। सबके ध्येय भिन्न हैं। सुख ही एकमात्र कर्म का प्रवर्तक नहीं है और यहीं पर सुखवादी भूल करते हैं। वे सबके ध्येय को समान मान लेते हैं। सुख की इच्छा करना और इच्छित वस्तु की प्राप्ति से सुख प्राप्त होना, ये दो भिन्न बातें हैं। जिस ध्येय को मनुष्य चुनता है वह सुखप्रद अवश्य है, किन्तु वह स्वयं सुख नहीं है। सुखवादियों की इस भूल का कारण यह है कि वे चुनने (चयन) के क्रियात्मक (Dynamical) और हेत्वात्मक पक्षों में कोई भेद नहीं देखते हैं। सुख का विचार (Idea of Pleasure) और सुखद विचार (Pleasant Idea) को एक ही मान लेते हैं। यदि यह प्रश्न किया जाये कि मनुष्य किस वस्तु को चुनता अथवा उसकी चयन-रुचि को प्रेरित कौन करता है तो उसके उत्तर में यही कहा जा सकेगा कि मनुष्य उसी विचार की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है जो उसे आकर्षक लगता है अथवा जो सूखद है। इस अर्थ में सुख चुनने की क्रियात्मक शक्ति है । यह संचालक शक्ति और कार्य में प्रविष्ट कराने का सक्रिय कारण है। सुख की इच्छा करना और ध्येय को सुखद पाना, दो भिन्न क्रियाएँ हैं । सुख शुभ या ध्येय का अनिवार्य निर्माणात्मक अंग अवश्य है किन्तु वह उसका मूलगत रूप एवं एकमात्र निर्माता नहीं है। सुख अपने-आपमें बुद्धिजीवी को पूर्ण सन्तोष नहीं दे सकता। वह उन वस्तुओं से युक्त है जिनकी कि व्यक्ति
१३२ / नीतिशास्त्र
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