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सामाजिक आचरण को प्रोत्साहित कर व्यक्ति को कर्तव्य पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं।
अर्वाचीन सुखवाद : नैतिक सुखवाद अर्वाचीन सुखवाद नैतिक है-अर्वाचीन सुखवाद नैतिक है। वह मनोवैज्ञानिक सुखवाद की भाँति तथ्यात्मक नहीं है। वह कर्मों का मूल्यांकन कर उस आदर्श को सम्मुख रखता है जिसके आधार पर सदसत् का विचार किया जा सके । नैतिक सुखवादियों ने प्राचीन सुखवाद के मौलिक तत्त्व को स्वीकार 'किया। मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ सुख की खोज करती हैं । किन्तु उसकी बाह्य प्राकृति का उन्होंने रूपान्तर कर दिया। मानव-स्वभाव को उन्होंने मानव-प्रादर्श का लिबास पहनाया । मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियां जिस सुख की खोज करती हैं वही सख नैतिक मान्यतात्रों को निर्धारित करता है। मनुष्य को सुख की खोज करनी चाहिए, यही इच्छा का एकमात्र उचित और विवेकसम्मत विषय है। सख नैतिकता का मापदण्ड हैं। उसके द्वारा कर्मों के औचित्य अनौचित्य को निर्धारित किया जा सकता है। नैतिक दृष्टि से वही शुभ है जो सुखप्रद है । अतः मनुष्य को सुख की खोज करनी चाहिए। इस प्रकार आधुनिक सुखवादियों ने मनोवैज्ञानिक सुखवाद को ही नैतिक सुखवाद का रूप दिया है।' - दो प्रकार : स्वार्थ, परार्थ-नैतिक सुखवाद (Ethical Hedonism) अपने प्रारम्भिक रूप में वैयक्तिक और स्वार्थी (Individualistic and Egoistic) था । धीरे-धीरे उसने सामाजिक कल्याण को अपनाया । वह परार्थ सुखवाद (Altruistic Hedonism) या सार्वभौमिक सुखवाद (Universar listic Hedonism) कहलाया और उपयोगितावाद (Utilitarianism) के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
स्वार्य सुखवाद : हॉब्स - जड़वाद, इन्द्रिय सुखवादी मनोविज्ञान और नैतिक स्वार्थवाद का समन्वय
, माधुनिक सुखवादियों ने, विशेषकर हॉन्स, वैथम, मिल ने मनोवैज्ञानिक सुखवार को नैतिक सुखवाद का प्राधार माना। किन्तु दोनों में प्रसंमति है। यदि व्यक्ति स्वभाक्यक
सुख की खोज करता है तो उससे यह कहना पर्थशून्य है कि उसे सुख की खोज करनी ' चाहिए । दोनों के बीच कोई अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है। .. .....
सुखवाद (परिमेष) | १३७
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