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१० . सुखवाद
भूमिका-सुखवाद (Hedonism) सामान्यतः उन सिद्धान्तों का सूचक है जो सुख-भोग को ही जीवन का परमध्येय मानते हैं। यह यूनानी शब्द हीडोन (Hedone) से लिया गया है । हीडोन के अर्थ होते हैं, सुख । अतः वे सिद्धान्त, जो सुख को जीवन का ध्येय मानते हैं, सुखवाद के नाम से प्रसिद्ध हैं। सुखवाद के प्रवर्तक अपने को सुकरात का अनुयायी मानते हैं। वे इस बात से प्रभावित हुए कि सुकरात ने अपने चारों ओर की परिस्थितियों का अधिक-से-अधिक उपयोग किया। उन्होंने सुकरात के प्रांचरण की पवित्रता और सात्विकता को नहीं समझा। उसमें चतुराई और दूरदर्शिता देखी । सुकरात के अनुसार जीवन का ध्येय आनन्द है । सुखवादियों ने इसके अर्थ बदल दिये । प्रानन्द का अर्थ उन्होंने स्थूल इन्द्रियजन्य सुख से लिया और कहा कि अधिक-से-अधिक परिमाण में सुख की प्राप्ति ही जीवन का ध्येय है । सुख के स्वरूप को समझाते हुए उन्होंने कहा कि सुख भावनामात्र है और वह नैतिक मान्यता का केन्द्रबिन्दु है । नैतिक दष्टि से उसी कर्म, उद्देश्य तथा प्रेरणा को हम शभ कहेंगे जो कि सूख की उत्पत्ति तथा दु:ख के विनाश में सहायक होती है। वे अशुभ होते यदि वे दुःखप्रद होते और वे महत्त्वहीन होते यदि वे दुःख और सुख दोनों में से किसी का भी कारण नहीं होते । व्यापक दृष्टि से सुखवादियों को दो भागों में बांटा जा सकता है । कालक्रम के अनुसार प्राचीन और अर्वाचीन तथा सैद्धान्तिक रूप से मनोवैज्ञानिक और नैतिक ।
२२ / नीतिशास्त्र
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